लंबे समय तक जुड़े रहने बाद कांग्रेस छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद की इस दल में एंट्री ही ‘बाई डिफॉल्ट’ हुई थी। संजय गांधी के समय कश्मीर में युवक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष तय होना था। इसके लिए राज्य के युवाओं में अच्छी पैठ रखने वाले किसी नौजवान नेता को कमान सौंपने की योजना बनी। मगर अल्पसंख्यक को प्राथमिकता के पेंच ने आजाद की किस्मत खोल दी।
घटनाक्रम के अनुसार संजय गांधी ने अपने खास सिपहसालार जनार्दन सिंह गहलोत को प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए किसी लोकप्रिय नेता का नाम तय करने कश्मीर भेजा। उन्होंने जाने से पहले ओम मेहता से सलाह लेने को कहा। मतलब साफ था, कि मेहता के ही आदमी को अध्यक्ष बनाना है। गहलोत ने कश्मीर पहुंचकर पूरे राज्य का दौरा किया, लेकिन कहीं भी मेहता का प्रभाव-क्षेत्र नजर नहीं आया। जम्मू क्षेत्र में राजा कर्णसिंह असरदार दिखे तो घाटी में मुख्यमंत्री मीर कासिम प्रभावी लगे।
गहलोत ने दिल्ली लौटकर संजय गांधी को जो रिपोर्ट दी, उसमें जम्मू के कमल शर्मा के नाम की सिफारिश की गई थी, जिनका प्रदेश के युवाओं में खासा प्रभाव था। लेकिन संजय गांधी रिपोर्ट से सहमत नहीं हुए। उन्होंने गहलोत को दुबारा इस हिदायत के साथ कश्मीर भेजा कि किसी अल्पसंख्यक को ही अध्यक्ष बनाना है।
गहलोत पर्यवेक्षक बनकर फिर कश्मीर गए। वहां उन्होंने कमल शर्मा से ही सम्पर्क कर उन्हें एक प्रस्ताव दिया। कहा कि वे अपनी ओर से किसी मुस्लिम पार्टी नेता का नाम सुझाएं, जिसे वह प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर उन्हें (कमल शर्मा को) महासचिव पद पर नियुक्त करवा देंगे। ताकि संगठन वे ही चलाएं। तब कमल शर्मा ने ही गुलाम नबी आजाद का नाम सुझाया, जो तबतक सामान्य कार्यकर्ता भर हुआ करते थे। गहलोत ने दिल्ली लौटकर संजय गाधी को रिपोर्ट सौंपी। उन्होंने तुरंत आजाद के नाम पर सहमति जता दी। उनकी मंजूरी मिलते ही गहलोत ने संगठन के राष्ट्रीय महासचिव ने नाते आजाद को कश्मीर युवक कांग्रेस अध्यक्ष तथा कमल शर्मा को महासचिव नियुक्त करवा दिया।
(जनार्दन सिंह गहलोत की आत्मकथा—संघर्ष से शिखर तक, से उध्दृत)
