ऐच्छिक सेवानिवृत्ति (वॉलंटरी रिटायरमेंट) लेने वाले कर्मचारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत का कहना है कि रिटायरमेंट की तारीख से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले कर्मचारी सेवानिवृत्ति की उम्र पूरी करने के बाद रियाटर होने वाले कर्मचारियों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी मुंबई हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान की है। ये याचिका वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों ने दायर की थी। इसमें वेतनमान में संशोधन का लाभ नहीं मिलने का जिक्र है।
कोर्ट का कहना है कि महाराष्ट्र राज्य वित्तीय निगम के वे कर्मचारी अलग स्थिति में हैं, जिन्होंने वीआरएस का लाभ लिया और अपनी सेवा को स्वेच्छा से छोड़ दिया। कोर्ट ने कहा कि वीआरएस लेने वाले लोग ऐसे कर्मचारी के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं, जो अपना पूरा कार्यकाल पूरा होने के बाद रिटायर हुए हैं। वे उन कर्मचारियों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते, जिन्होंने लगातार काम किया औऱ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, फिर सेवानिवृत्त हुए। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वेतन संशोधन का मामला कार्यकारी नीति निर्माण के क्षेत्र में आता है। इसमें बड़ा सार्वजनिक हित भी शामिल है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन में संशोधन से संबंधित है। अच्छी सार्वजनिक नीति वह है जो संघ और राज्य सरकारों तथा अन्य सार्वजनिक नियोक्ताओं को समझें, जिन्हें समय-समय पर वेतन में संशोधन करना होता है। कोर्ट का कहना है कि वेतन संशोधन से सार्वजनिक रोजगार के प्रति प्रतिबद्धता और वफादारी की भावना को प्रोत्साहित करने जैसे अन्य उद्देश्य भी पूरे होते हैं।
