अब पीएम, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई मिलकर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के जस्टिस के एम जोसेफ ने यह ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि लोकतंत्र के लिए चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखी जानी चाहिए अन्यथा इसके विनाशकारी परिणाम होंगे।
देश में मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरह एक स्वतंत्र पैनल बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार शामिल हैं। निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं थीं।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, मैं जस्टिस के एम जोसेफ के फैसले से सहमत हूं। मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया रद्द होगी। नियुक्ति के लिए समिति होगी। क्योंकि कार्यपालिका हस्तक्षेप से चुनाव आयोग के कामकाज को अलग करने की आवश्यकता है। यह भी कि चुनाव आयुक्तों को सीईसी के समान सुरक्षा दी जानी चाहिए। उन्हें सरकार द्वारा हटाया भी नहीं जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए कानून बनाने का काम संसद पर छोड़ दिया था, लेकिन राजनीतिक व्यवस्थाओं ने उनके विश्वास को धोखा दिया और पिछले सात दशकों में कानून नहीं बनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना चाहिए। यह स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता है, तो अनुचित होगा। राज्य के प्रति दायित्व की स्थिति में एक व्यक्ति के मन की एक स्वतंत्र रूपरेखा नहीं हो सकती। एक स्वतंत्र व्यक्ति सत्ता में रहने वालों के लिए दास नहीं होगा। एक ईमानदार व्यक्ति आमतौर पर बड़े और शक्तिशाली लोगों से बेधड़क टक्कर लेता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए आम आदमी उसकी ओर देखता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भाई-भतीजावाद, निरंकुशता आदि के दोषों से बचने का वादा है। चुनाव आयोग जो कानून के शासन की गारंटी नहीं देता है, वह लोकतंत्र के खिलाफ है।
