ओपीएस पर विचार को भाजपा भी हुई मजबूर

सरकारी कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) देने के मुद्दे ने आखिर भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। कर्नाटक की भाजपा सरकार ने ओपीएस के अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाई है, जो इसी महीने राजस्थान आएगी।

कर्नाटक में दो महीने बाद होने वाले चुनावों के पांच-छह महीने बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं। ऐसे में लगता है कि ओपीएस पर इन राज्यों में भी भाजपा जल्द ही अपना रुख स्पष्ट करेगी। अगर ऐसा हुआ तो ओल्ड पेंशन स्कीम आगले साल लोकसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बनेगी।

राजस्थान में मार्च-2022 में सीएम अशोक गहलोत ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की थी। गहलोत कई बार भाजपा को चुनौती देते हुए यह कहते रहे हैं कि आज नहीं तो कल, भाजपा की राज्य सरकारों और केन्द्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ओपीएस लागू करनी ही पड़ेगी। हालांकि देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित वित्तीय मामलों के जानकारों ने ओपीएस को अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है, लेकिन आमचुनाव नजदीक आने से भाजपा भी इस मुद्दे को अछूता नहीं रख पा रही है।

राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता आशीष चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक प्रदेश में उनकी पार्टी ने ओपीएस पर कोई विचार नहीं किया है, लेकिन विभिन्न राजनीतिक विषयों पर पार्टी समय आने पर विचार करती ही है। कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में वहां की सरकार ने जरूरत के हिसाब से फैसला किया है।

कर्नाटक में पिछले दिनों सरकारी कर्मचारी ओपीएस सहित विभिन्र् मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। उनका धरना-प्रदर्शन खत्म कराने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने यह कमेटी बनाई है। कमेटी की अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के वरिष्ठ आईएएस को सौंपी गई है। उनके साथ तीन आईएएस अफसरों को सदस्य बनाया गया है। यह कमेटी सबसे पहले राजस्थान का दौरा करेगी, क्योंकि राजस्थान ने ओपीएस सबसे पहले लागू की है। राजस्थान के बाद यह कमेटी छत्तीसगढ़ का दौरा करेगी, क्योंकि वहां भी कांग्रेस की सरकार है। इन दोनों राज्यों के बाद यह कमेटी पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड का दौरा करेगी।

कमेटी राजस्थान में मुख्य सचिव उषा शर्मा, वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अखिल अरोड़ा, सीएम के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका से मुलाकात करेगी। कमेटी को 30 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट कर्नाटक सरकार को सौंपनी है।

राजस्थान भाजपा के प्रभारी अरुण सिंह हैं, कर्नाटक भाजपा के भी प्रभारी हैं। सूत्रों का कहना है कि ओपीएस पर कमेटी बनाने में सिंह की सलाह अहम रही है। वे राजस्थान में इस स्कीम पर कांग्रेस के उत्साह को निरंतर देख रहे हैं। राजस्थान में भाजपा विपक्ष में है। ऐसे में पार्टी के स्तर पर कोई कमेटी गठित की जा सकती है, जो यहां चुनावों से पहले ही ओपीएस के प्रभावों के बारे में स्टडी कर भाजपा नेतृत्व को रिपोर्ट सौंपे, ताकि पार्टी जनता के समक्ष ओपीएस को लागू करने या नहीं करने को लेकर अपना स्पष्ट मत रख सके।

गौर करने वाली बात ये है कि बीते 8-10 वर्षों में यह पहला राजनीतिक मुद्दा है, जिसे लेकर भाजपा, कांग्रेस की फॉलोअर बनती दिखाई दे रही है। कांग्रेस के रिसर्च विभाग के प्रदेशाध्यक्ष प्रोफेसर वेदप्रकाश शर्मा ने बताया कि ओपीएस एक क्रांतिकारी कदम है। कांग्रेस इसे लागू करने में अव्वल रही है।

सीएम अशोक गहलोत द्वारा इसे लागू करने के बाद पार्टी ने गुजरात, हिमाचल व कर्नाटक में भी इसे लागू करने का वादा किया है। हिमाचल में पार्टी को सफलता भी मिली। कर्नाटक में भी ऐसा ही होगा। आगे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में इस मुद्दे को भुनाया जाना तय है।

ओपीएस सीधे सरकारी कर्मचारियों से जुड़ा मुद्दा है। राजस्थान सहित देश के सभी राज्यों में कर्मचारी वर्ग सबसे बड़ा मतदाता समुदाय माना जाता है। कर्मचारी अपनी कार्यप्रणाली, मौखिक प्रचार, सेवा प्रदान करने और अपने संगठनों के धरनों-प्रदर्शन के जरिए सरकारों के पक्ष या विपक्ष में माहौल बनाते रहे हैं। किसी भी चुनाव में अन्य वोट बैंक की तुलना में सरकारी कर्मचारियों का मतदान प्रतिशत हमेशा ज्यादा होता है। कर्मचारी मतदाताओं में से लगभग 95 प्रतिशत लोग वोट करते हैं। देशभर में इस वोट बैंक की संख्या लगभग 20-22 करोड़ (परिजनों सहित) मानी जाती है। केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश भर में लगभग 4 करोड़ 70 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। आम तौर पर कर्मचारियों के वोट बैंक को सरकारें व राजनीतिक पार्टियों बहुत गंभीरता से लेती हैं। इसीलिए ओपीएस लागू कर राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने राज्यकर्मियों को अपने पक्ष में करने की जोरदार बाजी खेली है।

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