अगर कोई माउंट एवरेस्टी पर पहुंचकर खांसता या छींकता है तो उसकी खांसी से निकले कीटाणु सदियों तक वहां मौजूद रहेंगे। एक रिसर्च में यह हैरान कर देने वाला खुलासा हुआ है। शोधकर्ताओं के अनुसार माउंट एवरेस्टक पर सदियों तक जितने भी पर्वतारोही गए, उन सबके खांसी और छींकने से पैदा हुए कीटाणु मौजूद हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के शोधकर्ताओं ने माउंट एवरेस्ट की मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया। इनमें मनुष्यों से जुड़ा माइक्रोबियल डीएनए पाया गया। यह डीएनए एक बैक्टीरिया स्टैफिलोकॉकस का था। स्टैफिलोकॉकस संक्रमण पैदा करने वाला बैक्टीरिया है। इससे फूड प्वाइजनिंग और निमोनिया हो सकता है। इसकी वजह से ही हमें खांसी जुकाम होता है और गले में खरास पैदा होती है। हालांकि, वैज्ञानिकों को यह बैक्टीहरिया निष्क्रिय अवस्था में मिले, लेकिन उनका मानना है कि इनसे संक्रमण हो सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा, हम हैरान थे क्यों कि अब तक माना जाता था कि ये सूक्ष्मा जीव हमारी नाक के अंदर गर्म और नमी वाली जगहों पर ही रहते हैं। अब हमें यकीन हो गया है कि ये किसी भी अत्यदधिक ठंडी जगह भी मौजूद हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि रिसर्च से एक बात साफ हो गई कि अन्य बर्फीले ग्रहों पर भी जीवन की मौजूदगी हो सकती है। रिसर्च के लेखक डॉक्टिर स्टीरव स्ि होथ ने कहा हमें अन्या ग्रहों यानी चंद्रमा जैसे ठंडे ग्रह पर भी जीवन की संभावना साफ नजर आ रही है। इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने कुछ ठंडे ग्रहों का अध्यजयन किया था, लेकिन कहीं भी ऐसे बैक्टीभरिया के सबूत नहीं मिले, जो इंसानों से जुड़े हुए हों। स्िा, थ ने कहा, दरअसल वे कभी भी 26,000 फीट यानी जमीन से करीब 7.9 किलोमीटर ऊपर से एकत्र किए गए नमूनों में इन बैक्टी रिया की पहचान ही नहीं कर पाए। वर्ष 2019 नेशनल ज्योग्राफिक और रोलेक्स परपीचुअल प्लैनेट एवरेस्ट अभियान के दौरान ये नमूने साउथ कोल से एकत्र किए गए थे। साउथ कोल एवरेस्ट और ल्होत्से शिखर के बीच की चट्टानी खाई है। यह पर्वतारोहियों के लिए दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर अपनी यात्रा शुरू करने से पहले अंतिम पड़ाव है। वैज्ञानिकों ने नमूनों में मौजूद लगभग सभी कीटाणुओं के डीएनए की पहचान की। ये काफी कठोर होते हैं और बेहद कम तापमान, हाई यूवी रोशनी और पानी की कम मात्रा के बावजूद पनप सकते हैं। इनमें छींक और खांसी वाले कीटाणुओं की संख्याी सर्वाधिक पाई गई।
