जो गलत है, सो है

— अनिल चतुर्वेदी निजाम बदलने के साथ ही शासन की प्राथमिकताएं और नीतियां कितनी तेजी से बदलती हैं, ये हमने मात्र एक दशक में ही अनुभव कर लिया है। आपको क्रिकेट का इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का 2013 का सीजन तो याद ही होगा। जब कई खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में फंसे थे। तब खेलों में सट्टे और जुए का मुद्दा खूब गरमाया था। तत्कालीन सरकार … Continue reading जो गलत है, सो है

दिखने लगा विकल्प

— अनिल चतुर्वेदी हाल के विधानसभा चुनावों में अहम बात ये देखी गई है कि आमजन की राजनीतिक चेतना परिपक्व हो चली है। जिस प्रकार पंजाब में लोगों ने सालों से खूंटा गाड़े बैठे राजनीति के अखाडिय़ों को उखाड़ फेंका है, ये मामूली घटना नहीं है। पहले दिल्ली और अब पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की प्रचंड चुनावी जीत का संदेश पूरे देश में … Continue reading दिखने लगा विकल्प

लोकतंत्र, भोगतंत्र, पीड़ातंत्र

— अनिल चतुर्वेदी देश का लोकतंत्र परिपक्व हो चला है, ऐसा कहा जा रहा है। जो कह रहे हैं, उन्होंने पता नहीं क्या देख लिया है। लगता है, सावन के अंधे को हरा-हरा दिख रहा है। वैसे दिखने को तो हमें भी लोकतंत्र का वजूद नजर आता है, लेकिन मूल स्वरूप में नहीं। लोकतंत्र का आधुनिकीकरण…मुंह में राम, बगल में छुरी…से साक्षात करा रहा है। … Continue reading लोकतंत्र, भोगतंत्र, पीड़ातंत्र

यूपी चुनाव की अहमियत

— ​अनिल चतुर्वेदी —उत्तर प्रदेश का ये विधानसभा चुनाव फिलहाल भाजपा ही जीतती नजर आ रही है। हालांकि मीडिया, अटकलों का अंबार लगाए दे रहा है। इनमें मुकाबला कांटे का बताया जा रहा है, जिसमें भाजपा के टक्कर में सिर्फ समाजवादी पार्टी (सपा) मानी जा रही है। मगर कांग्रेस ने पिछले कुछ सालों में जो प्रयोग किए हैं और चुनाव के टिकट वितरण में जो … Continue reading यूपी चुनाव की अहमियत

सिर्फ प्रचार, काम नहीं

अब मीडिया शुद्ध व्यवसायी तो राजनेता सत्ता-पिपासू बन गए हैं। मीडिया को बेहिसाब पैसे कमाने हैं। इसके लिए मैनेज होने या गोदी बनने में उसे जरा भी संकोच नहीं रहा। राजनेता कुर्सी के लिए गोदी मीडिया पर राजकाज तक का पैसा लुटाकर उसका भरपूर दोहन कर रहे हैं। कीमत जन-विकास को चुकानी पड़ रही है।सरकारी विज्ञापनों की रेवडिय़ां बांटे जाने के रिकॉर्ड, साल दर साल … Continue reading सिर्फ प्रचार, काम नहीं

आकाश से गिरे खजूर पे अटके

— अनिल चतुर्वेदी उम्मीद नहीं थी…कि कोरोना दौर की पीड़ा से बड़ी पीड़ा उसके बाद झेलनी पड़ेगी। एक वायरस ने हमारे रौंगटे खड़े कर दिए तो दूसरे वायरस ने महफूज बने रहने की खुशी हमसे छीन ली। राजतंत्र कोरोना से जन-बचाव के भरसक प्रयास कर रहा है, लेकिन साथ ही साथ कंगाली की पटकथा भी लिख डाली है। तभी तो सालभर के खौफनाक दौर में … Continue reading आकाश से गिरे खजूर पे अटके

वैक्सीन से कैसा भय

– अनिल चतुर्वेदी – मानना पड़ेगा कि कोरोना से निजात पाने में भारत के प्रयास काफी प्रभावी साबित हो रहे हैं। हमने इस वायरस को पश्चिमी देशों की भांति बेकाबू नहीं होने दिया। अब इसके खत्मे के लिए असरकारी वैक्सीन तैयार कर ली है। कामना यही है कि वैक्सीन ऐसा असर दिखाए कि कोरोना भाग छूटे, हमेशा के लिए। लोगों को वैक्सीन लगाने का व्यापक … Continue reading वैक्सीन से कैसा भय

बरस बीता, वक्त नहीं

– अनिल चतुर्वेदी – चल हट 2020….ये झिडक़ी इस महीने एफएम रेडियो पर खूब सुनने को मिली। दुनियाभर में साल 2020 को लेकर लोगों में नाराजगी, नफरत साफ देखी जा रही है। अब इसकी बिदाई हो रही है तो आने वाला साल खुशियों से भरा होने की कामना हरकोई कर रहा है। साल 2020 ने ऐसे तेवर दिखाएं हैं कि लोग तौबा कर बैठे। मार्च … Continue reading बरस बीता, वक्त नहीं

अवसाद का कोढ़

अनिल चतुर्वेदी कोरोना वायरस के खौफ से घरों में दुबकने को मजबूर लोग मानसिक संतुलन खो रहे हैं, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। मगर वे अवसाद ग्रस्त जरूर होते जा रहे हैं। अमीर-गरीब हर तबका इसकी चपेट में आए चला जा रहा है। अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर तो लोग बहुत पहले से ही चिंता में हैं, अब इस विकट काल में जान-पहचान … Continue reading अवसाद का कोढ़

बदलाव खुद में भी जरूरी

— अनिल चतुर्वेदी — हाड़-मांस की दुर्गा मां की अस्मिता पर बार-बार हो रहे हमले से व्यथित होकर इस बार हमने पत्रिका का प्रमुख मुद्दा महिलाओं के हाल को ही बनाया है। मुद्दा आलेख भी सिर्फ महिलाओं ने ही तैयार किए हैं। उन्होंने स्त्री मनोदशा को हूबहू व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है। समस्या के विभिन्न पहलुओं पर लेखनी चलाई है, लेकिन समस्या खड़ी … Continue reading बदलाव खुद में भी जरूरी