गजब धोनी, अजब बिदाई

— अनिल चतुर्वेदी — पता नहीं कैसे इस क्रिकेटर से आमजन को इतना लगाव हो गया। जुनूनी लगाव। उसके बारे में कुछ भी उल्टा-सीधा सुनना नहीं। कोई खामी निकाले तो उसके पीछे हाथ धो कर पड़ जाना। जब मैदान पर उतरे तो उसके नाम से पूरा स्टेडियम गूंज उठना। खेले तो बस, फैन्स की दीवानगी की सारी हदें पार हो जाना। यहां बात हो रही … Continue reading गजब धोनी, अजब बिदाई

सियासत में बुजुर्ग कब तक?

— अनिल चतुर्वेदी — वंशवाद व्यवसाय में सफल होता है, लेकिन लोकतांत्रिक राजनीति में बिलकुल ही नहीं। कांग्रेस इसकी जीती-जागती मिसाल है। वंशवाद के चलते भारत की सबसे पुरानी यह पार्टी रसातल की ओर तेजी से लुढक़ रही है। हालात ये हो चले हैं कि वंशवादी नेतृत्व कामजोर होने के कारण पार्टी को सही दिशा और नई ऊर्जा नहीं मिल पा रही है। नेतृत्व के … Continue reading सियासत में बुजुर्ग कब तक?

कड़वी हकीकत उजागर

— अनिल चतुर्वेदी — देश में हुए लॉकडाउन से कोरोना वायरस का फैलाव तो थमा नहीं, पर दो कड़वी हकीकत उजागर हो गईं। एक तो राजतंत्र की जनसेवा का आडंबर पूरी तरह से बिखर गया। दूसरा, चिकित्सा क्षेत्र के निजीकरण की असलियत सामने आ गई। वैसे तो कोरोना संक्रमण रोकने के लिए ही देशभर की घरबंदी की गई थी, लेकिन अनलॉक करते ही जिस तेजी … Continue reading कड़वी हकीकत उजागर

दो नहीं एक भारत

— अनिल चतुर्वेदी —कांग्रेस नेता एवं जाने-माने वकील कपिल सिब्बल ने हाल ही में कहा कि देश में दो भारत बन चुके हैं। एक वो जो कोरोना लॉकडाउन के दौरान घर में अंत्याक्षरी खेलता है, पालतू जानवरों के साथ वक्त बिताता है, रामायण देखता, थाली-घंटी बजाता और अंधेरे में मोमबत्ती जलाता है। दूसरा भारत, बेरोजगार होकर सड़कों पर उतरता है, जेब में थोड़े से पैसे, … Continue reading दो नहीं एक भारत

छोटे परिवार – उपेक्षित परिवार

— अनिल चतुर्वेदी —सभी पाठकों को-नए साल की हार्दिक शुभकामनाइस जनवरी अंक में हम जो मुद्दा प्रमुखता से उठा रहे हैं, उसे लेकर हमारे ऊपर मनुवादी, कुलीन जाति की सोच और न जाने क्या-क्या तोहमत लग सकती हैं। सम्पादकीय की शुरुआत मैं जिस उदाहरण के साथ करने वाला हूं, उसे पढकर तो मुझे सीधे-सीधे अगड़ी मानसिकता वाला बताया जा सकता है।इन शंकाओं के बावजूद हम … Continue reading छोटे परिवार – उपेक्षित परिवार

चिंगारी न भडक़े

— अनिल चतुर्वेदी — नागरिक(संशोधन) बिल-2019 (सीएबी) को लेकर अचानक देशभर में आग भडक़ गई। बिल पर अल्पसंख्यकों की नाराजगी तो समझ में आती है, लेकिन युवा वर्ग के आक्रोशित होने की वजह केवल यह बिल नहीं हो सकती। उनके भीतर बेरोजगारी और अनिश्चित भविष्य को लेकर खदबदा रही ज्वाला बिल विरोध के बहाने बाहर निकली है। अब यदि मंदी औऱ मंहगाई से परेशान आमजन … Continue reading चिंगारी न भडक़े