Saturday, December 2, 2023
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यादव सियासत में भारी, स्थिति खराब

बिहार में बीते दिनों जाति जनगणना की रिपोर्ट सामने आने के बाद यह राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर चर्चा में है। राज्य सरकार ने अब विभिन्न जातियों की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इस के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। बिहार की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य की कुल आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 14.26 फीसदी है। संख्या बल में यह राज्य की सबसे मजबूत जाति है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में इनकी स्थिति बेहद नाजुक बताई गई है।

रिपोर्ट के अनुसार 35.87 फीसदी यादव परिवार गरीब हैं। बड़ी आबादी होने के बावजूद यादव समुदाय के पास केवल 1.55 फीसदी सरकारी नौकरी है। ओबीसी की कई अन्य जातियां संख्या बल में यादव के बहुत कम होने के बावजूद सरकारी नौकरियों में ठीक-ठाक संख्या में हैं। बिहार में यादव समाज के बाद ओबीसी की दो अन्य प्रमुख जातियां हैं कुर्मी और कोइरी। सांस्कृतिक और परंपरागत रूप ये दोनों जातियां काफी करीब हैं। दोनों खेतिहर जातियां हैं। राज्य में कुर्मी की आबादी केवल 2.87 फीसदी है। वहीं कोइरी-कुशवाहा की आबादी 4.2 फीसदी है। ये दोनों जातियां पढ़ाई-लिखाई और जमीन पर मालिकाना हक के मामले में भी ठीक-ठीक हैसियत रखती हैं। इनके पास क्रमशः 3.11 और 2.04 फीसदी सरकारी नौकरियां हैं।

सामान्य वर्ग में सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी कायस्थ समाज की सबसे ज्यादा है। सामान्य वर्ग में ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ और राजपूत जाति के लोग आते हैं। कायस्त समाज की आबादी केवल 0.6 फीसदी है, लेकिन सरकारी नौकरी में उनकी हिस्सेदारी 6.68 फीसदी है। मतलब, आबादी से हिसाब से 10 गुना अधिक। इसके बाद भूमिहार समाज आता है। उनकी आबादी 2.86 फीसदी है, लेकिन सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 4.99 फीसदी है। फिर ब्राह्मण आते हैं। इनकी आबादी 3.65 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.6 फीसदी है। चौथे स्थान पर राजपूत हैं। इनकी आबादी 3.45 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.81 फीसदी है।

बिहार में पिछड़ा वर्ग यानी बीसी समाज राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी प्रभावी है। इसमें चार प्रमुख जातियां हैं- कुर्मी, कोइरी, यादव और बनिया। 1990 के दशक के बाद इनका प्रभाव काफी बढ़ा है। मंडल आंदोलन और ओबीसी आरक्षण का इस समुदाय ने सबसे अधिक फायदा उठाया है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्य के पहले परिवार के रूप में चर्चित पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का परिवार इसी वर्ग है। तीन दशक से अधिक समय से राज्य पर इन्हीं दोनों का राज है। नीतीश ने खुद को कुर्मी-कोइरी समाज के नेता के रूप में स्थापित किया है। वहीं लालू यादव राज्य ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर यादव समाज के प्रभावी नेता है। राज्य में ये दोनों प्रभावी जाति वर्ग हैं। लेकिन कुर्मी-कोइरी की स्थिति यादव समाज की तुलना में काफी बेहतर दिखती है।

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