सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पुरुषों के लिए राष्ट्रीय आयोग के गठन की मांग की गई थी। शीर्ष कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोई भी आत्महत्या नहीं करना चाहता है। हर मामले में अलग परिस्थितियां होती हैं। यह विषय ऐसा नहीं है, जिसपर कानून में कोई व्यवस्था ही नहीं है।
वकील महेश कुमार तिवारी ने द्वारा दायर याचिका में घरेलू हिंसा के शिकार विवाहित पुरुषों द्वारा आत्महत्या जैसे मामलों से निपटने के लिए गाइडलाइंस बनाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता ने इसे वापस ले लिया।
अधिवक्ता तिवारी ने याचिका में दलील दी थी कि शादीशुदा मर्दो में आत्महत्या करने के मामले बढ रहे हैं। याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का जिक्र किया गया। उन्होंने बताया गया कि देशभर में 1,64,033 लोगों ने सुसाइट किया है। इनमें से 81,063 विवाहित पुरुष और 28,680 विवाहित महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 2021 में करीब 33.2 प्रतिशत पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण और 4.8 प्रतिशत ने विवाह संबंधी वजहों से अपनी जान गंवाई। उनकी याचिका में मांग की गई थी कि पुरुषों की समस्याओं को समझने और उनके हल के लिए एक आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह शादी के तुरंत बाद मरने वाली युवा लड़कियों का डेटा दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कोई भी आत्महत्या नहीं करना चाहता, यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। आपराधिक कानून देखभाल करता है, उपचार नहीं करता है।

