पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और 89 साल के भाजपा विधायक कैलाश मेघवाल ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों को गुलाम की तरह रखती है। उन्हें खुलकर बोलने की आजादी नहीं होती है। कोई खुलकर बोलता है तो उसका टिकट कट जाता है। मेघवाल भीलवाड़ा के शाहपुरा में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। वह राजस्थान भाजपा में एससी का बड़ा चेहरा हैं।
मेघवाल के इस बयान के कई राजनीतिक मायने लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा के 70 प्लस फॉर्मूले के बाद मेघवाल को आगामी चुनाव में टिकट की चिंता सता रही है।
उन्होंने ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ की कहावत सुनाते हुए कहा, मैं सभी को आज यह विश्वास दिलाता हूं कि शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र मेरा विधानसभा क्षेत्र है। यह विधानसभा क्षेत्र पूर्व से पिछड़ा था। साल 1952 से ही यह क्षेत्र एससी के लिए आरक्षित है।
भाजपा ने 70 साल से ज्यादा उम्र के विधायकों के इस चुनाव में टिकट काटने की बात कहीं थी। विधायक कैलाश मेघवाल भी इस दायरे में आते हैं। ऐसे में उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि उन्होंने किसी भी पार्टी का नाम नहीं लिया है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर ने 70 प्लस फॉर्मूले में आने वाले 40 प्रतिशत विधायकों के टिकट कटने की बात कहीं है। माथुर के इस बयान के बाद मेघवाल ने प्रेस कान्फ्रेंस कर अपने आप को चुनाव के लिए फिट बताया था और इस बार भी शाहपुरा से चुनाव लड़ने की बात कही थी।
भाजपा के 70 प्लस के टिकट काटने के फॉर्मूले के बाद उदयपुर से विधायक गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाया गया है। इसके बाद से कैलाश मेघवाल चिंता और बढ गई है। वे भाजपा के कद्दावर व वरिष्ठ नेताओं में शामिल है। साल 1962 से राजनीति में सक्रिय है। मेघवाल भाजपा के टिकट पर पांच बार विधायक और तीन बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। वे केंद्रीय मंत्री, राजस्थान सरकार में मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

