सुप्रीम कोर्ट फांसी की बजाए कोई और दर्द रहित मौत की सजा दिए जाने पर विचार करेगा। कोर्ट ने संकेत दिया है कि वो इस मामले को लेकर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाएगा। उसने केंद्र सरकार से डेटा मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि फांसी देने से कितना दर्द होता है? आधुनिक साइंस और तकनीक का फांसी की सजा पर क्या विचार है? क्या देश या विदेश में मौत की सजा के विकल्प का कोई डेटा है ? सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर दो मई को सुनवाई करेगा।
सुनवाई के दौरान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता और एजी वेंकटरमनी से कहा, हां ये चिंतन का विषय है। हमें अपने हाथों में कुछ वैज्ञानिक डेटा चाहिए। हमें विभिन्न तरीकों से होने वाली पीड़ा पर कुछ अध्ययन दें। हम एक समिति बना सकते हैं। आप सुझाव दे सकते हैं कि समिति में कौन शामिल हो सकता है। कोर्ट ने कहा, घातक इंजेक्शन भी दर्दनाक है
तो गोली मारना, मानवाधिकारों के पूर्ण उल्लंघन में सैन्य शासन का पसंदीदा टाइम पास था। केन्द्र सरकार की तरफ से एजी ने कहा कि अगर कोई कमेटी बनती है तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन मुझे भी निर्देश लेने की जरूरत होगी।
सीजेआई ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि क्या यह तरीका कसौटी पर खरा उतरता है और अगर कोई और तरीका है, जिसे अपनाया जा सकता है तो क्या फांसी से मौत को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
सुप्रीमकोर्ट में दायर की गई एक जनहित याचिका में मौत की सजा के लिए फांसी के बजाय गोली मारने, इंजेक्शन लगाने या करंट लगाने का सुझाव दिया गया है। याचिकाकर्ता वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा है कि अक्टूबर 2017 का एक बहुत विस्तृत आदेश है। गरिमा से मृत्यु एक मौलिक अधिकार है। जब किसी आदमी को फांसी दी जाती है तो उस मौत में गरिमा आवश्यक है। एक दोषी जिसका जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी का दर्द नहीं सहना चाहिए। जब कोई व्यक्ति फांसी के लिए जाता है तो वह किस प्रक्रिया से गुजरता है। उसके शरीर को आधे घंटे के लिए फांसी पर लटका दिया जाता है, जब तक कि डॉक्टर ये न कहे कि अब वो मर चुका है। यह क्रूरता है। दूसरे देशों में भी अब फांसी धीरे-धीरे छोड़ी जा रही है। फांसी की जगह कुछ मानवीय और दर्द रहित मौत देनी चाहिए। मौत की सजा इस तरीके से दी जानी चाहिए, जिसमें कम से कम दर्द हो और यातना से बचा जा सके।

