Saturday, December 2, 2023
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वकालत शुरू करने को बार परीक्षा वैध

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कानून की डिग्री पाने वालों को वकालत शुरू करने से पहले ऑल इंडिया बार परीक्षा में बैठने को वैध ठहराया है। अदालत ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास ऑल इंडिया बार परीक्षा आयोजित करने का अधिकार है। परीक्षा को पूर्व-नामांकन या नामांकन के बाद आयोजित किया जाना चाहिए। ये एक ऐसा मामला है जिसे बीसीआई तय कर सकता है।

संविधान पीठ ने वी सुदीर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया, (1999) 3 एससीसी 176 के फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एडवोकेट एक्ट की धारा 24 में उल्लिखित शर्तों के अलावा कोई भी शर्त, लीगल प्रैक्टिस करने के इच्छुक व्यक्ति पर नहीं लगाई जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट एक्ट बीसीआई को ऐसे मानदंड निर्धारित करने के लिए पर्याप्त अधिकार प्रदान करता है।

5 जजों के संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया—बीसीआई को इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि इस परीक्षा की फीस एक समान हो। कानून के छात्रों के लिए ये फीस भारी भरकम नहीं होनी चाहिए। संविधान पीठ में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, एएस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल थे।

30 अप्रैल 2010 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने ‘ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन रूल 2010’ जारी किया था। नियम में कहा गया कि वकीलों को अनिवार्य रूप से भारत में कानून का अभ्यास करने के लिए ऑल इंडिया बार परीक्षा पास करना होगा। पहले, वकीलों को वकालत करने के लिए अपने संबंधित राज्य बार काउंसिल में केवल कानून की डिग्री और नामांकन की आवश्यकता होती थी।

1 मार्च 2016 को पूर्व सीजेआई जेएस ठाकुर, जस्टिस आर भानुमति और यूयू ललित की 3 जजों की खंडपीठ ने पाया कि कानून का अभ्यास करने का अधिकार न केवल अधिनियम के तहत एक वैधानिक अधिकार है, बल्कि एलएलबी डिग्री लेने वाले के लिए एक मौलिक अधिकार भी है। 18 मार्च 2016 को तीन जजों की पीठ ने ऑल इंडिया बार परीक्षा के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दी थी।

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