एक नाबालिग बच्चे की कस्टडी के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने जन्म देने वाली मां को बच्चे की कस्टडी देने से इनकार कर दिया। मां ने कथित तौर पर बच्चे को अपने धार्मिक मार्गदर्शक (गुरु) के पास छोड़ कर उसके एक शिष्य के साथ दूसरी शादी कर ली थी। गुरु ने बच्चे की कस्टडी वर्ष 2018 में एक अन्य जोड़े को सौंप दी।
अब बच्चे को जन्म देने वाली मां ने अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी की मांग करते हुए अदालत का रुख किया। मां ने कहा कि उसने बच्चे को कभी नहीं छोड़ा। उसने दावा किया कि दूसरे पक्ष द्वारा अदालत के समक्ष रखे गए दस्तावेज, जिसमें बताया गया कि उसने बच्चे को अपने गुरु को सौंप दिया था, सब झूठे और जाली हैं।
अदालत के समक्ष पेश किए गए हलफनामे में नाबालिग बच्चे की मां ने उस पर अपना हक जताया। उसने कहा कि उसने अपने बच्चों को गुरु के पास इसलिए छोड़ा था, ताकि वो उसे शिष्य के तौर पर बड़ा करें और उसे धर्म संस्कार देकर संत बना दें। कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेज पर नाबालिग बच्चे की मां और उसके गुरु दोनों के हस्ताक्षर मौजूद थे। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की कहा कि बच्चे की स्थाई संरक्षण को लेकर लड़ाई पहले से ही फैमिली कोर्ट के समक्ष चल रही है।
दम्पत्ति जो वर्तमान में बच्चे की देखभाल कर रहे थे, ने अदालत को बताया कि जब नाबालिग बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं था, तो उनके गुरु ने वह बच्चा उन्हें सौंप दिया था। हालांकि, गुरु ने अदालत से कहा था कि यह एक अस्थाई व्यवस्था थी।
कोर्ट ने कहा कि बच्चे को उसके माता-पिता द्वारा छोड़ दिया गया है। उसे प्यार और स्नेह से वंचित कर दिया गया। बच्चे ने भी अपने बायोलॉजिकल पेरेंट्स के बजाय उस कपल के पास रहने की इच्छा व्यक्त की, जिनके पास वो रह रहा है। कोर्ट ने कहा ऐसे में बायोलॉजिकल माता-पिता बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने के हकदार नहीं हैं। अदालत ने कहा कि बच्चे ने अदालत के सामने अपने वर्तमान देखभाल करने वालों के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की है, जिसे उसने अपने माता-पिता के रूप में मान लिया। बाल कल्याण समिति द्वारा भी इसका समर्थन किया गया।

