
– राजेन्द्र बोड़ा –
कोविद महामारी ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया है। युवाओं की नौकरियां छीनी हैं और नौकरियों के नए अवसरों को बर्बाद किया है। इसने विद्यार्थियों की पढ़ाई पर असर डालते हुए उनके भविष्य को मुश्किल में डाला है। इस महामारी से सबसे अधिक पीडि़त गरीब व्यक्ति हुआ है। जिस अनपेक्षित गति से यह बीमारी दुनियाभर में फैली, उसने स्वाभाविक रूप से लोगों में दहशत पैदा की। बीते साल के मार्च महीने से इस महामारी ने पूरे 2020 वर्ष को अपनी गिरफ्त में लिए रखा।
सरकारी कर्मचारियों के साथ उच्च मध्यम वर्ग तथा उच्च वर्ग के लोग भले ही देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के बावजूद ठीक से गुजारा कर सके, लेकिन निम्न मध्यम वर्ग तथा रोज ही रोटी का जुगाड़ करने वाला मेहनतकश वर्ग बुरी तरह कुचला गया। केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने के लिए तथा प्रभावित लोगों की सीधी मदद के लिए अनेक आर्थिक, नीतिगत और वित्तीय फैसले लिए तो राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर कदम उठाए। एक उम्मीद कि नए साल के शुरू होते ही बीमारी के कारण अस्त-व्यस्त हो गया जीवन फिर से सामान्य हो जाएगा, तो पूरी नहीं हुई, लेकिन सांत्वना देने वाला यह भरोसा जरूर बना है कि हालात में सुधार के संकेत दिख रहे हैं।
सुधर रही अर्थव्यवस्था
भारत में एक तरफ कोरोना महामारी के तेजी से फैलने की रफ्तार में कमी आयी है तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था के विकास की दर में तेजी आयी है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश की आर्थिक सेहत बेहतर होने के संकेत हैं। मगर गिरावट को पाटते हुए फिर से सकारात्मक वृद्धि पाना अभी दूर है। वित्त मंत्रालय के अनुसार दिसंबर में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कलेक्शन 1.15 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल इसी महीने के मुकाबले में 11.6 प्रतिशत अधिक था। जीएसटी लागू होने के बाद यह अब तक का सबसे अधिक राजस्व संग्रहण बताया जा रहा है। इसका लाभ राजस्थान को भी हुआ है। इस मरु प्रदेश के जीएसटी संग्रहण ने दिसंबर में उसके पिछले साल के इसी महीने के संग्रहण से 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है।
हालांकि लॉकडाउन से अनलॉक-5 तक यानी चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-अक्टूबर अवधि में देश का जीएसटी संग्रहण गिर कर 5.59 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया था, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 20 प्रतिशत कम था। अब अच्छे संकेत यह भी हैं कि जीएसटी संग्रहण ऐसा अकेला क्षेत्र नहीं है, जिसमें उछाल आया है। अक्टूबर में भारत की बिजली खपत 13.38 प्रतिशत बढक़र 110.94 अरब यूनिट (बीयू) हो गई, जो मुख्य रूप से औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियों में उछाल के कारण हुई। देश में बिजली की खपत अक्टूबर 2019 में 97.84 बीयू दर्ज की गई थी। निर्यात में पांच प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई है और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में पिछले तीन महीने में लगातार बढ़ोतरी हुई है। कह सकते हैं कि बीते वर्ष का अक्टूबर महीना वसंत की बयार जैसा महसूस हुआ, जब अर्थव्यवस्था के अधिकतर क्षेत्रों में विकास दिखाई देने लगा।
केंद्रीय वित्त सचिव अजय भूषण पांडे का कहना है कि बुरे दिन अब पीछे छूट गए हैं। उनके साथ ही कारोबार जगत की संस्थाओं के प्रमुख भी मानते हैं कि जीएसटी संग्रहण, ऑटोमोबाइल की बढ़ती बिक्री, बिजली की खपत में वृद्धि कुछ ऐसे संकेत हैं, जिससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बेहतरी की तरफ लौट रही है। आर्थिक विशेषज्ञ स्थिति के बेहतर होने के कई कारण बताते हैं। वे कहते हैं कि लॉकडाउन के खुलने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं, जिसके कारण हर क्षेत्र में अप्रैल-अगस्त की तुलना में बेहतरी तो आनी ही थी। इसमें सरकार का कोई कमाल नहीं है। वे कहते हैं कि अर्थव्यवस्था में अब भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें कोई वृद्धि नहीं हो रही है। खासतौर से रोजगार के अवसर पैदा करने में केंद्र और राज्यों की सरकारें नाकाम साबित हो रही हैं।
केंद्र सरकार ये दावा कर रही है कि अर्थव्यवस्था में ताजे उछाल का मुख्य कारण 12 मई को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये का आत्म-निर्भरता पैकेज है, जो जी-20 देशों के बीच सबसे बड़ा राहत पैकेज है। यह भी कहा जा रहा है कि ये राहत पैकेज केवल वर्तमान में महामारी से निपटने के लिए ही नहीं है, बल्कि महामारी के बाद की दुनिया में भारत के लिए निरंतर विकास सुनिश्चित करने के लिए भी है। दिलचस्प बात यह भी हुई है कि अप्रैल बाद निर्यात के बढऩे और आयात के घटने से सालों में पहली बार 17 अरब डॉलर से अधिक की बचत हुई है। सच तो यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था सप्लाई और डिमांड पर आधारित है, सरकारी मदद पर नहीं। डिमांड अब भी धीमी है। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ ये मांग कर रहे हैं कि सरकार डिमांड को बढ़ाने के लिए एक नया रिलीफ पैकेज दे, जिसके अन्तर्गत मजदूरों और गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की जेब में अगले छह महीने तक कुछ कैश मिले। वहीं, सरकार के अनुसार उसने 80 करोड़ से अधिक लोगों को जन-धन योजना के अंतर्गत पैसे दिए हैं।
वैक्सीन सफलता पर निगाहें
कोरोना महामारी से बचाव और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए वैक्सीनेशन (टीकाकरण) की सफलता पर सबकी निगाहें हैं। भारत के लिए यह गर्व की बात हो सकती है कि कोरोना के टीके बनाने की क्षमता वाले दुनिया के विकसित देशों की बराबरी में भारत भी खड़ा है। जो दो टीके (वैक्सीन) बाजार में आए हैं उनके 90-95 प्रतिशत प्रभावी होने के दावे किए जा रहे हैं। हालांकि अनेक स्वतंत्र वैज्ञानिक यह शंका भी जता रहे हैं कि पहली पीढ़ी के टीके कोरोना वायरस के संक्रमण को थामने में कितने कारगर साबित होते हैं यह देखना होगा। इसके अलावा तर्कसंगत और योजनाबद्ध तरीके से पर्याप्त संख्या में लोगों का टीकाकरण करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। इसमें राज्यों की मशीनरी की कार्यकुशलता महत्वपूर्ण स्थान रखेगी। जरा सी गफलत से लोगों में टीके पर से विश्वास उठ सकता है। देश की सारी आबादी को रातों-रात टीके नहीं लग सकते। टीकाकरण श्रमसाध्य और लंबा समय लेने वाला काम है। यह तो स्पष्ट है कि देश के हर नागरिक को मुफ्त टीके नहीं लगाए जाने हैं। टीके लगाने की प्राथमिकता तो तय कर दी गई है, लेकिन किन्हें लंबी लाइन में लगना पड़ेगा, इस सवाल का जवाब अभी आना है।