
— अनिल चतुर्वेदी
देश का लोकतंत्र परिपक्व हो चला है, ऐसा कहा जा रहा है। जो कह रहे हैं, उन्होंने पता नहीं क्या देख लिया है। लगता है, सावन के अंधे को हरा-हरा दिख रहा है। वैसे दिखने को तो हमें भी लोकतंत्र का वजूद नजर आता है, लेकिन मूल स्वरूप में नहीं। लोकतंत्र का आधुनिकीकरण…मुंह में राम, बगल में छुरी…से साक्षात करा रहा है।
हम आज बोलने की आजादी में अनाप-शनाप कुछ भी बोले जा रहे हैं। अप्रिय घटना या सरकारी निर्णय के खिलाफ सडक़ों पर सिर्फ उतर ही नहीं रहे हैं, हिंसक तांडव भी कर रहे हैं। बात-बात पर अदालत की चौखट पर ढोक देने चले जा रहे हैं। लोक की अतिसक्रियता के दूसरी ओर, तंत्र अपनी ही धूनी रमाने में लगा है। उसे लोक की तब तक कोई परवाह नहीं है, जब तक वो आफत न बन जाए। आफत बनते ही हाथा-जोड़ी औऱ सतही भूल-सुधार, लेकिन भीतर ही भीतर टेढ़ी चाल और विरोधी सुरों को दबाने का कुचक्र। शायद इसी माहौल को लोकतंत्र की परिपक्वता कहा जा रहा है।
इस अंक में तीसरे विश्व युद्ध की आहट पर विशेष चर्चा की गई है। आहट यूक्रन में सुनाई दी है, जहां निर्बल की बलवान से लड़ाई ने दिये और तूफान की कहानी याद दिला दी है। बलवान रूस का तूफान यूक्रेनी दिये की लौ बुझाने की हर कोशिश कर रहा है। ये दोनों ही देश सोवियत संघ के हिस्सा थे, लेकिन 1991 में संघ से आजाद होते ही यूके्रन पश्चिमी दुनिया की ओर आकर्षित हो गया। इससे रूस को खुद का आभामंडल खतरे में लगा, तो वह यूक्रेन पर हमलावर हो गया। इस जंग में यूक्रेन के पीछे पश्चिमी ताकतें लगी होने से आग भडक़ कर अगले विश्व युद्ध की आशंका पैदा कर रही है।
रूस-यूक्रेन जंग, भारत के लिए वैश्विक ताकत बनने का अवसर ले कर आई है। मगर यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने में जिस तरह की लापरवाही और देर की गई है, उससे मोदी सरकार घर में ही घिरती नजर आ रही है। केन्द्र ने कोरोना की दूसरी लहर में लचर प्रबंधन के कारण मात खाई थी, अब उसी की पुनरावृत्ति दिखाई दे रही है। ऐसे में भारतीय छात्र बेचारे यूक्रेन के अडय़िल रवैये, वहां भारतीय दूतावास की उदासीनता और केन्द्र सरकार का समय रहते खतरा न भांप पाने आदि खामियों की पीड़ा भोगने को मजबूर हैं।
इस त्रासदी ने फिर से भारत की शिक्षा व्यवस्था पर भी अंगुली उठाई है। संरकारी संरक्षण में निजी क्षेत्र की मंहगी शिक्षा के बेलगाम हो जाने से देश का युवा विदेश में सस्ती पढ़ाई करने जा रहा है। इसे भी ‘ब्रेन ड्रेन’ ही कहेंगे, जो हमारे राजनेताओं के स्वार्थी और दोषपूर्ण फैसलों की वजह से थमने का नाम नहीं ले रहा है।
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