
राजस्थान के थार रेगिस्तान में पारा 50 डिग्री पहुंचते ही रेत के झरने बहने लगे हैं। सर्दी हो या गर्मी इस रेगिस्तान में ऐसा बहुत कुछ होता है, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी आते हैं। बाड़मेर में महाबार के धारों में झरने का नजारादेखने का इंतजार सभी को रहता है। इस वर्ष इनकी शुरूआत अप्रैल में ही हो गई है। क्योंकि तापमान तेजी से बढ़ा है। रेत के झरने बहने का सिलसिला जून तक रहने की उम्मीद है।
गर्मी के दिनों में चलने वाली तेज हवाओं के कारण यहां रेत के झरने देखने को मिलते हैं। जब हवा की रफ्तार करीब 30 से 40 किमी होती है, हवा के साथ धोरों के ऊपर से मिट्टी खिसकने लगती है। हवा के दबाव के चलते मिट्टी झरने का रूप ले लेती है। प्रचंड गर्मी में रेत के इन झरनों को दूर से देखने पर लगता है मानों पानी बह रहा हो।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अप्रैल-मई में आंधी की वजह से घरों में रेत की परत जम जाती है। इस वजह से लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। तेज धूप और हवा के साथ धोरों (टीलों) से रुक-रुक कर रेत के झरने शुरू होते हैं। टीलों से धीरे-धीरे रेत गिरती है तो लगता है कि मखमली रेत का झरना चल रहा है।
बाड़मेर के भूगोल असिस्टेंट प्रोफेसर बंसतलाल जागिड़ ने बताया कि गर्मी के समय में अन्य क्षेत्रों से आने वाली हवा की वजह से रेत के टीलों का मार्च होता है। रेत के टीले के ऊपर से रेत खिसकती जाती है और झरने का रूप लेती जाती है। रेत के टीले का नीचे का हिस्सा कठोर और ऊपरी सतह कमजोर होती है, जो हवा के साथ खिसकती है और नीचे की तरफ गिरती जाती है।मौसम विभाग के अनुसार बाड़मेर में रेत के टीलों से रेत के कणहवा के प्रवाह से ऊपर उठते हैं। कुछ कणों में भार ज्यादा होने के चलते वे दूसरे कणों से टकराकर नीचे की तरफ गिरते हैं। इन रेत कणों काआकार थोड़ा बड़ा होता है और भार भी ज्यादा होता है। इस कारण यह आपस में टकरा कर नीचे की तरफ गिरते हैं।