
सेना के एक जवान की पेंशन रोकने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कारगिल युद्ध लड़ चुके भारतीय सेना के इस जवान पर केंद्र सरकार रहम करे। कोर्ट ने कहा सरकार इस जवान के लिए बड़ा दिल दिखाए।
असल में, भारतीय सेना का यह जवान शराब पीने की आदत से मजबूर था। उसे अनुशासनहीनता के लिए सेना से निष्कासित कर दिया गया। बाद में सेना के ही ट्रिब्यूनल ने उसे पेंशन देने का आदेश दे दिया था।
हालांकि अनुशासनहीनता के लिए दोषी पाए गए जवानों को पेंशन नहीं मिलती, फिर भी ट्रिब्यूनल ने उसे दिव्यांग मानते हुए पेंशन देने का आदेश दिया था। इस मामले में केंद्र सरकार की शीर्ष कोर्ट में दलील थी कि ट्रिब्यूनल के पेंशन देने का आदेश सही नहीं है। सरकार का तर्क था कि अनुशासनहीनता को दिव्यांगता नहीं माना जा सकता। शराब पीने की लत अनुशासनहीनता मानी जाती है।
इस मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि इस मामले को अलग से देखा जाए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह जवान कारगिल युद्ध में शामिल था। हम जब शहीद हुए जवानों के ताबूत को देखते हैं तो अलग ही अहसास होता है। इसलिए सरकार को बड़ा दिल दिखाते हुए इस मामले को अलग से देखना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पेंशन रोकने का असर सिर्फ इस जवान पर नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार पर पड़ेगा। हमें परिवार के बारे में भी सोचना चाहिए। हो सके तो सरकार इस जवान के मामले को एक अपवाद के तौर पर देखें। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट किया कि इस जवान के लिए सरकार जो फैसला लेती है वो आगे के लिए नजीर नहीं होगा। सिर्फ इस जवान पर लागू होगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया। उसके बाद इस मामले की फिर सुनवाई होगी।