
प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान नकल रोकने के लिए इंटरनेट सर्विस बंद करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने नेटबंदी से मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आईटी मंत्रालय से तीन हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है।
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान नकल रोकने के मकसद से इंटरनेट सेवा पर रोक लगाने के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसमें कानून के विपरीत और भारत के संविधान के खिलाफ इंटरनेट बंद करने का आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील वृंदा ग्रोवर ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत सभी भारतीय को जो मौलिक दिए गए हैं, उसका उल्लंघन किया जा रहा है।
वकील वृंदा ने इंटरनेट बंद करने को कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के दमन के बराबर बताया। क्योंकि वर्तमान में अदालतों की सुविधाओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसे बिना रुकावट वाली इंटरनेट सेवा के जरिए ही सुगम बनाया जा सकता है।
याचिका में बताया गया है कि परीक्षाओं से संबंधित मुद्दों पर 71 घंटे से अधिक समय तक 12 बार इंटरनेट सेवा को बंद किया गया, जिस कारण एक बड़ी आबादी 71 घंटे से अधिक समय तक इंटरनेट यूज नहीं कर पाई। याचिका में कई उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया गया कि इंटरनेट सेवा बंद करने के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नोटिस जारी किया है, जिसमें परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए इंटरनेट बंद करने को लेकर तीन हफ्तों में जवाब देने के लिए कहा है।