शोक में डूबा शहीद मनोज का गांव

झुंझुनूं जिले के पचेरी थाना क्षेत्र में माजरी गांव के रहने वाले लांस नायक मनोज यादव सिक्किम में हुए हादसे में शहीद हो गए। शुक्रवार शाम जब से यह खबर इस गांव को लगी है, यहां कोई नहीं सोया है।

सेना ने यह खबर सबसे पहले मनोज यादव के बड़े भाई प्रमोद को दी। प्रमोद खुद भी बीएसएफ में हैं और इन दिनों गांव आए हुए हैं। खबर सुनकर उन्होंने खुद को संभाला। घर में किसी को बताने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए चुपचाप घर से बाहर चले गए और फिर पड़ोसियों-रिश्तेदारों को मनोज की शहादत की खबर दी।

बुजुर्ग पिता जगदीश प्रसाद यादव घर में बैठे थे। उन्हें इस हादसे की भनक तक नहीं थी। बाहर प्रमोद गांव वालों के साथ थे और रो रहे थे। साथ के लोगों ने समझाया कि घर में मनोज के शहीद होने की खबर तो बतानी होगी। कम से कम अपने पिता को तो बता दो। प्रमोद अपने आंसू पोंछकर, मन में पहाड़ सा दर्द छिपाकर घर पहुंचे। आंगन में तख्त पर पिता को बैठे देख एक बार फिर रुलाई फूटी। फिर हिम्मत जुटाकर पिता से कहा – आप बाहर चलो, कुछ काम है। पिता ने कहा – क्या हुआ, यहीं बता दे। प्रमोद ने कहा – नहीं बाहर चलो। कहता हुआ प्रमोद बाहर निकल गया। पीछे–पीछे पिता आए। घर से कुछ ही दूर, गांव वाले जमा थे।

प्रदीप उनके बीच खड़ा रो रहा था। पिता ने पूछा क्या हुआ, सब क्यों खड़े हो, प्रमोद रो क्यों रहा है। बस, फिर क्या था, वह पिता से लिपट गया। दहाड़ मारकर रोने लगा। बोला – मनोज…! पिता समझ गए, बेटा शहीद हो गया। पास खड़े लोगों ने उन्हें संभाला। बड़े भाई प्रमोद और पिता की आंसू थम नहीं रहे थे। दोनों एक दूसरे को दिलासा देते रहे। पिता ने कहा – कल शाम को ही बात की थी, मां से भी कहा था – फरवरी में आऊंगा, इतना बड़ा धोखा दे गया। घर में जाकर क्या मुंह दिखाऊंगा।

दोनों को घर से बाहर आए काफी देर हो चुकी थी। गांव वालों ने समझाया, अब अंदर जाओ, नहीं तो शक हो जाएगा। घर पर किसी को पता नहीं चलना चाहिए। दोनों ने खुद को पत्थर सा कर लिया। घर पहुंचे। सब को खाना खाने के लिए कहा, जैसे तैसे खुद ने भी खाया। सबके सोने का इंतजार करते रहे और फिर दोनों पूरी रात सोए ही नहीं, रोते रहे।

शनिवार सुबह पूरे गांव को खबर लग चुकी थी। मनोज के पिता और भाई पूरे रात नहीं सोए थे। रो-रो कर आंसू सूख चुके थे। मनोज की मां विमला देवी ने जब सवेरे दोनों को देखा तो पूछ ही लिया, क्या हुआ? मुझसे क्या छिपा रहे हो। मां और पत्नी ने जब बार-बार पूछा तो उन्हें इतना ही बताया कि कल जो हादसा हुआ था, उसमें मनोज घायल हो गया है। कहा- उसका इलाज चल रहा है, लेकिन घायल होने की खबर सुनकर भी दोनों चीख पड़ी। पड़ोसियों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाला।

सवेरे से ही गांव के किसी के घर में चूल्हा नहीं जला। लोग शहीद के घर के आस-पास जुटने लगे। तहसीलदार और पटवारी गांव में पहुंचे। अंतिम संस्कार की तैयारियों का जायजा लिया। आज पूरा गांव शोक में डूबा रहा, लेकिन अपने लाडले की शहादत पर गांव को गर्व भी है।शहीद मनोज कुमार के अंतिम संस्कार के लिए गांव के ही व्यक्ति गोकुलचंद ने अपने खेत की जमीन का एक हिस्सा दिया है।

जमीन तलाश रहे प्रशासन और ग्रामीणों से गोकुलचंद ने कहा – जिसने पूरे देश के लिए जान दे दी, उसके लिए जमीन क्यों तलाशी जाए। ये मेरा खेत है, इसमें से जितनी जगह चाहिए ले लीजिए। तय हुआ, इसी खेत की तीस बाई तीस जमीन ली जाएगी। गोकुल चंद ने जमीन दे दी। इस पर सरसों की फसल खड़ी थी, जिसे हटा दिया गया। गोकुलचंद पहले बकरियां चराते थे। उनका एक बेटा भी सेना में है। तब से खेती करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे गांव से देश के लिए पहली शहादत हुई है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।

शहीद की पत्नी ज्योति यादव का शनिवार को सेकेंड ग्रेड भर्ती परीक्षा का पेपर था। उसका सेंटर नवलगढ़ आया था। सेंटर पहुंचने के लिए पहले से ही कार भी बुक कर ली थी। मनोज यादव के बड़े भाई प्रमोद उसके साथ जाने वाले थे, लेकिन रात को ही यह खबर आ गई। ज्योति को सवेरे तक कुछ पता नहीं था। वह जाने के लिए तैयार होने लगी तो उसे यह कह कर रोक दिया कि पेपर रद्द हो गया है। बाद में वाकई में पेपर रद्द हो गया।

घर में बड़ी संख्या में गांव की महिलाएं बैठी हैं। उन्हीं के बीच शहीद की पत्नी ज्योति बेसुध सी एकटक लगाए घर की दहलीज की ओर देखती है। कभी वह चीख पड़ती हैं, तो कभी एकदम चुप होकर कुछ बुदबुदाती है। घर में मौजूद महिलाएं उसे समझाती हैं कि सब ठीक है। वह घायल ही हुआ है। जल्दी ही लौट आएगा, लेकिन वे बार-बार उनसे बात करवाने को कहती है।

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