सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना से संबंधित याचिकाओं को तीन हिस्सों में बांटा है। इन तीनों हिस्सों की याचिकाओं पर अलग-अलग सुनवाई होगी। कोर्ट ने केंद्र को कहा है कि वह ऐसे किसी भी मुद्दे से निपटने के लिए जवाबी हलफनामा दाखिल कर सकता है, जिसका निपटारा नहीं किया गया है। ये जवाब फरवरी 2023 के अंत तक दाखिल किया जा सकता है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई।
याचिकाओं की तीन श्रेणियां इस प्रकार हैं—पहली, चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती, इससे संबंधित याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई मार्च 2023 के तीसरे सप्ताह में होगी। दूसरी, क्या राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दायरे में रखा जाना चाहिए—प्रश्न वाली याचिकाओं पर सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में होगी। तीसरी, 2016 और 2018 के वित्त अधिनियम के माध्यम से विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई अप्रैल के मध्य में होगी।
इन याचिकाओं में कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के स्रोत का पता नहीं चलता। ये लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है। वहीं, केंद्र सरकार ने योजना का बचाव करते हुए कहा है कि ये एक पारदर्शी योजना है। चुनावी बॉन्ड से लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है।
पिछली सुनवाई में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को वैध कर दिया है और राजनीतिक फंडिंग में पूर्ण गैर-पारदर्शिता बनाए रखी है। मनी बिल के माध्यम से संशोधन कैसे लाए जा सकते हैं? ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड्स का मामला पेचीदा इसलिए हो गया है, क्योंकि आरटीआई और एफसीआरए संशोधन विधेयक वित्त विधेयक के तौर पर ही संसद में पास कराए गए। लिहाजा पूरी बहस और तफ्तीश और सभी पहलुओं पर जांच पड़ताल हुई ही नहीं।
कपिल सिब्बल ने भी कहा कि अब तो ये पता ही नहीं चल पा रहा है कि कौन किसको कैसे चंदा दे रहा है। ये ट्रेंड लोकतंत्र को नष्ट कर रहा है। पता ही नहीं चल रहा है कि पार्टियों को चंदा देने के लिए बनाए गए अनुच्छेद 324 पर इन अनियमितताओं का क्या, कितना और कैसा असर पड़ रहा है?
चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा 2017 में दायर की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 12 अप्रैल, 2019 के अंतरिम आदेश में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
