केन्द्र के मंसूबे पर फिरा पानी

अडानी- हिंडनबर्ग केस में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के मंसूबे पर पानी फेर दिया। सॉलिसीटर जनरल ने जांच समिति के सदस्यों के नाम के सुझाव को लेकर जजों को सीलबंद लिफाफा सौंपा। पर कोर्ट ने केंद्र के सुझाव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। बेंच ने कहा, हम आपकी ओर से सीलबंद लिफाफे को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि हम पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सर्वोच्च अदालत के सिटिंग जज को कमेटी का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा। हम समिति की नियुक्ति में पूरी पारदर्शिता चाहते हैं। निवेशकों के साथ पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहते हैं। 

इस केस की पिछली सुनवाई में कोर्ट के कहने पर सरकार केस की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाने तैयार हो गई थी। उसी समय सरकार ने एक्सपर्ट्स के नाम सीलबंद लिफाफे में देने की पेशकश की थी। मगर आज की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि वह केस की जांच में पारदर्शिता चाहता है। लिहाजा केंद्र का सुझाव नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा- आपने जो नाम सौंपे हैं, वह दूसरे पक्ष को नहीं दिए गए तो पारदर्शिता की कमी होगी। इसलिए हम अपनी तरफ से जांच कमेटी बनाएंगे और आदेश सुरक्षित रख रहे हैं।

इस मामले में अभी तक 4 जनहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। एडवोकेट एम एल शर्मा, विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सोशल वर्कर होने का दावा करने वाले मुकेश कुमार ने याचिकाएं दायर की हैं। इस मामले में आज चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने सुनवाई की। पहली सुनवाई सोमवार (13 फरवरी) को हुई थी।

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