जेल में चोट पर कैदी को मिले मुआवजा

जेल में कोई कैदी या दोषी अगर काम के दौरान घायल होता है, तो वह मुआवजा पाने का हकदार है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इसको लेकर कुछ दिशानिर्देश जारी करते हुए साफ कहा कि यह मुआवज़ा उसका मौलिक अधिकार है। हाईकोर्ट में जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा तिहाड़ जेल में बंद एक दोषी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी जेल में काम करने के दौरान दाहिने हाथ की तीन अंगुलियां कटनी पड़ी थीं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है कि कैदियों और जेल अधिकारियों के बीच कोई कर्मचारी या नियोक्ता जैसा कोई संबंध नहीं होता है, तो ऐसे में कैदियों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। हाइकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जेल में बंद कैदियों के मुआवजे के लिए इंडस्ट्रियल इंजरी के तहत ऐसा कोई नियम ही नहीं है। हाईकोर्ट ने इसके साथ ही साफ कहा कि जेल में काम करते वक्त किसी कैदी को चोट लग जाए,जिसके कारण वह अपंग हो जाए, तो उस कैदियों को भी न्याय पाने का मौलिक अधिकार है।

हाईकोर्ट ने इस संबंध में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा, अगर काम के दौरान किसी कैदी को गंभीर चोट लग जाए, जिससे उसके जीवन पर खतरा बन आए तो जेल अधीक्षक की ये जिम्मेदारी होगी कि वह जेल से संबंधित जज को 24 घंटे के अंदर इसकी सूचना दे।

हाईकोर्ट ने इस मामले में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन करने का भी निर्देश दिया, जिसमें जेल महानिदेशक, सरकारी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और संबंधित जिले के डीएसएलएसए के सचिव भी शामिल हों। कोर्ट ने कहा कि यह कमेटी डॉक्टरों के बोर्ड की राय जानेगी और डॉक्टर्स का बोर्ड उनके अनुरोध पर गठित किया जाएगा। कोर्ट ने कहा, इस बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करके ये कमेटी कैदी को दिए जाने वाले मुआवजे का आंकलन करने के साथ ही मुआवज़ा राशि निर्धारित करेगी।

कोर्ट ने अपने दिशानिर्देश में बताया है कि, जिस सरकारी अस्पताल में पीड़ित की चोट या विकलांगता की चिकित्सकीय जांच/उपचार किया जाएगा, उस अस्पताल के डॉक्टर्स बोर्ड कमेटी को अपनी रिपोर्ट देंगे कि कैदी या दोषी को कितनी चोट लगी है। उसी आधार पर कमेटी मुआवजे आंकलन करके राशि का निर्धारण करेगी।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्देश काम के दौरान हुई किसी जानलेवा चोट के मामले और शरीर के किसी अंग के कटने की स्थिति में ही लागू होंगे। यह दिशानिर्देश तब तक लागू रहेंगे, जब तक आवश्यक दिशा-निर्देश या नियम नहीं बन जाते या जब तक जेल अधिनियम, 1894 या दिल्ली जेल अधिनियम, 2000 में आवश्यक दिशानिर्देश/ नियम नहीं बनाए जाते या संशोधित नहीं किए जाते।

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