एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने आज कहा कि वह एक सेल्फ-अपाइंटेड फैक्ट-चेकिंग यूनिट के जरिए सोशल मीडिया पर कानून लादने के लिए सरकार के कदमों से बहुत परेशान है। उसने नए नियमों को कठोर और सेंसरशिप के समान बताया। बताएं कि आईटी नियमों में संशोधन से मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बंदिशें लगाई गई हैं। नियमों के तहत यह जरूरी है कि वे सरकार के बारे में “नकली, झूठी या भ्रामक जानकारी को न तो प्रकाशित या साझा करें, न ही होस्ट करें।”
सरकार ने गुरुवार को घोषणा की कि वह फर्जी, झूठी या भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिए तथ्यों की जांच इकाई नियुक्त करेगी, लेकिन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस इकाई के संचालन तंत्र, फर्जी खबरों का निर्धारण करने में इसकी व्यापक शक्तियों और ऐसे मामलों में अपील करने के अधिकार पर सवाल उठाया है।
एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान में कहा, यह सब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और सेंसरशिप के समान है। संस्था ने कहा है कि, मंत्रालय की इस तरह के कठोर नियमों वाली अधिसूचना खेदजनक है। गिल्ड फिर से मंत्रालय से इस अधिसूचना को वापस लेने और मीडिया संगठनों और प्रेस निकायों के साथ परामर्श करने का आग्रह करता है।
डिजिटल अधिकार संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने भी कहा कि संशोधन में “नकली”, “झूठा” और “भ्रामक” जैसे अपरिभाषित शब्द, इन्हें अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग किए जाने के लिए अतिसंवेदनशील बनाते हैं।
