धार्मिक चिन्हों, नाम की पार्टियां : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं

धार्मिक चिन्हों और धार्मिक नाम का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने से रोकने और मान्यता रद्द करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं करेगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट जाने को कहा। क्योंकि ऐसे ही मामले पर हाईकोर्ट पहले से सुनवाई कर रहा है।

इस मामले में जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी ने याचिका दाखिल की थी। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम और  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग आईयूएमएल ने याचिकाकर्ता वसीम रिज़वी पर सवाल उठाए थे.कहा था कि सिर्फ मुस्लिम पार्टियों पर निशाना साधा गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता को सेक्युलर होना चाहिए। सिर्फ एक समुदाय को निशाना नहीं बनाना चाहिए। सभी पार्टियों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए। एआईएमआईएम ने मामले को संवैधानिक पीठ को भेजने की मांग की थी। वरिष्ठ वकील और पूर्व एजी केके वेणुगोपाल ने मामले को संविधानिक पीठ के पास भेजने की मांग की थी। क्योंकि याचिक के दूरगामी परिणाम होंगे। कई राजनीतिक दलों पर असर पड़ेगा और 75 साल की सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक प्रक्रिया प्रभावित होगी। याचिकाकर्ता एक आपराधिक मामले में जमानत पर है, वह स्वयं इस्लाम से हिन्दू धर्म में शामिल हुआ है।

आईयूएमएल की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने भी कहा कि याचिका में सिर्फ मुस्लिम पार्टी को पक्षकार क्यों बनाया गया। हिन्दू सेना, शिरोमणी अकाली दल को शामिल क्यों नहीं किया गया। जस्टिस एम आर शाह ने कहा था कि यह आपत्ति हर सुनवाई में उठाई जाती है याचिकाकर्ता दूसरी पार्टियों को भी पक्षकार क्यों नहीं बनाते हैं। जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की थी, जो पार्टी के नाम में धार्मिक नाम या धार्मिक चिन्हों का इस्तेमाल करते है।

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने सुप्रीम कोर्ट में एक जवाबी हलफनामा दायर किया है। इसमें कहा गया है कि पार्टी के नाम में केवल ‘मुस्लिमीन’ शब्द का उल्लेख धर्म के आधार पर मतदाताओं से कोई विशेष अपील नहीं करता। इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।

60 साल पुरानी इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य और उद्देश्य भारत में अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित वर्गों के सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक लोकाचार की रक्षा करना है। विशेष रूप से हैदराबाद और इसके आसपास के क्षेत्र में। पार्टी ने दावा किया है कि वह अन्य कल्याणकारी उपायों को भी करने के लिए तैयार है, जैसे समाज के भीतर शिक्षा को बढ़ावा देना आदि। उसने जनप्रतिधित्व कानून  के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है। याचिकाकर्ता किसी भी विशिष्ट उदाहरण का उल्लेख करने में विफल रहा है. पार्टी ने आगे कहा है कि जनहित याचिका प्रेरित है और याचिकाकर्ता सैयद वसीम रिजवी राजनीतिक दलों के साथ अपने जुड़ाव का खुलासा करने में विफल रहे।

याचिकाकर्ता सपा के पूर्व सदस्य हैं और उन्होंने लखनऊ में कश्मीरी मोहल्ला वार्ड से वर्ष 2008 में निगम चुनाव लड़ा और जीता था। याचिकाकर्ता को उत्तर प्रदेश एक अन्य राजनीतिक दल के करीबी के रूप में जाना जाता है।

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