सियासी संकट भांपकर सुस्त पड़ी नौकरशाही, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बॉडी लैंग्वेज बदलने और सहज दिखने से सक्रिय हो गई है। सचिवालय का माहौल बदला सा नजर आने लगा है। वरिष्ठ आईएएस अफसरों का कहना है कि राजनीतिक नेतृत्व अंतत: ब्यूरोक्रेसी का बॉस होता ही है। मुख्यमंत्री उस बॉस के रूप में प्रमुख चेहरा होते हैं। इस पद पर बैठे राजनेता के आने-जाने, बदलने, बनने, रहने की कोई हलचल होती है, तो उसका असर ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली, गति, दिशा निर्देश आदि पर पड़े बिना नहीं रहता है।
आला अफसरों का कहना है कि कोई भी राजनीतिक नेतृत्व अगर अस्थिर दिखाई देता है तो वो इन्वेस्टमेन्ट समिट, बजट, नए जिलों जैसे बड़े कायों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करता है। लेकिन राजस्थान में अब ऐसा नहीं है। यहां ब्यूरोक्रेसी को इन्हीं चीजों पर काम करने के निर्देश मिले हैं। नौकरशाही फिलहाल यह मान रही है कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता अब नहीं है, अन्यथा मुख्यमंत्री के स्तर पर अगला बजट तय समय से एक महीना पहले ही पेश करने जैसी गंभीर बात नहीं कही जाती।
