केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अब कोर्ट अपने फैसले में तय करेगा कि केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना सही है या नहीं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से पूछा था कि इस योजना से उनके किस अधिकार का उल्लंघन हुआ है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह योजना स्वैच्छिक है और जिन लोगों को इससे कोई समस्या है, उन्हें सशस्त्र बलों में शामिल नहीं होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने 12 दिसंबर को कहा था, योजना में क्या गलत है? यह अनिवार्य नहीं है। स्पष्ट तरीके से कहूं तो हम सैन्य विशेषज्ञ नहीं हैं। आप (याचिकाकर्ता) और मैं विशेषज्ञ नहीं हैं। इसे थलसेना, नौसेना और वायु सेना के विशेषज्ञों के बड़े प्रयासों के बाद तैयार किया गया है। अदालत ने कहा, आपको यह साबित करना होगा कि अधिकार छीन लिया गया है। क्या हम यह तय करने वाले व्यक्ति हैं कि इसे (योजना के तहत सेवाकाल) चार साल या पांच साल अथवा सात साल किया जाना चाहिए।
सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना 14 जून को शुरू की गई है। योजना के नियमों के अनुसार साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के लोग आवेदन करने के पात्र हैं और उन्हं चार साल के कार्यकाल के लिए शामिल किया जाएगा। योजना के तहत उनमें से 25 प्रतिशत की सेवा नियमित कर दी जाएगी। अग्निपथ की शुरुआत के बाद इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में विरोध शुरू हो गया। बाद में सरकार ने भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया।
