फोन पर पूछा हालचाल, बना दिया राज्यपाल

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल नियुक्त करने से साफ हो जाता है कि अब वह सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे। दक्षिण राजस्थान के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में उनका प्रभाव माना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से गहराई से जुड़े 78 वर्षीय कटारिया राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं। राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली कई सरकारों में वह मंत्री रहे। कटारिया और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शुरूआत में प्रतिद्वंद्वी थे, लेकिन अब एक अच्छे कामकाजी संबंध के लिए जाने जाते हैं।

आठ बार विधायक रहे कटारिया को राजस्थान की सक्रिय राजनीति से हटाया जाना राज्य में नए नेतृत्व के लिए रास्ता बनाने की भाजपा की रणनीति लगती है। इस साल के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव है। कटारिया एक बार फिर मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे। ऐसे में उन्हें राज्यपाल बनाने का फैसला बताता है कि वह 2023 में मुख्यमंत्री के दावेदारों की दौड़ से बाहर हो गए हैं। 

उदयपुर से विधायक के रूप में कटारिया का मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में काफी प्रभाव है। मेवाड़ की सीमा गुजरात से लगती है और विशेष रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर और सिरोही जैसे जिलों में एक बड़ी जनजातीय आबादी है। मेवाड़ की 40-50 सीटों पर आदिवासियों, राजपूतों और जैन समुदाय का वर्चस्व है। ये सीटें राज्य के आगामी चुनावों में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाने की चर्चाएं तो कई म​हीनों से थी, लेकिन हाल के दिनों में इसके संकेत मिलने शुरू हो गए थे। शुक्रवार को पीएम मोदी ने कटारिया से फोन पर बातचीत करके उनके हालचाल जाने थे। माना जाता है कि उसी फोन के जरिए कटारिया को संकेत दे दिए थे। कटारिया ने मीडिया से बातचीत में इसकी जानकारी दी थी। कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया है। राज्य विधानसभा का बजट सत्र जारी है। ऐसे में भाजपा जल्द ही नेता प्रतिपक्ष का चयन करेगी। फिलहाल इस पद के लिए पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल सहित कई नेता दौड़ में हैं, लेकिन बदले हुए राजनीतिक हालात में चौंकाने वाला नाम आने की संभावना है।

कटारिया के बाद किसे इस पद की जिम्मेदारी मिलती है, उससे अगले सीएम के चेहरे का आकलन भी होगा। अगर हाईकमान किसी नए चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाता है तो यह संकेत माना जाएगा।

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