वर्ष 2016 की नोटबंदी पर सवाल उठाए जाने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। मोदी सरकार द्वारा अचानक से 500 व 1000 के नोट बंद करने के फैसले में आखिर कोई पेंच जरूर है, जो देशवासियों को इतने सालों बाद भी खटक रहा है। हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के उपरांत सुप्रीम कोर्ट तक नोटबंदी को वैध करार दे चुका है, लेकिन लोग इससे आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं।
इसी के चलते कुछ लोगों ने निजी तौर पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर दी। मगर कोर्ट ने नोटबंदी को बार-बार चुनौती देने की असल वजह पर गौर करने की बजाय आज इन याचिकाओं पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस पर फैसला आ चुका है, इसलिए सभी व्यक्तिगत मामलों पर सुनवाई को बंद किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह 12 हफ्ते के भीतर कानून के अनुसार मामलों का निपटारा करे। उसने याचिकाकर्ताओं से छूट दी कि वह अधिकारियों से संपर्क करें। कोर्ट ने नोट बंदी के सरकारी फैसले से जुड़े निजी मामलों में हाईकोर्ट जाने की भी इजाज़त दी।
बता दें कि इसी साल दो जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से नोटबंदी को वैध करार दिया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत देते हुए सभी 58 याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। जस्टिस एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस फैसले को उलटा नहीं जा सकता। नोटबंदी के फैसले में कोई त्रुटि नहीं है। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड की जांच के बाद हमने पाया है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया केवल इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती है क्योंकि यह केंद्र सरकार से निकली है और हमने माना है कि टर्म सिफ़ारिश को वैधानिक योजना से समझा जाना चाहिए।
