नेता भी आमजन, क्यों दी जाए विशेष छूट

ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग के खिलाफ कांग्रेस सहित 14 राजनीतिक दलों द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि नेताओं को विशेष छूट नहीं दी जा सकती। उनके भी आम नागरिकों जैसे अधिकार हैं। अगर सामान्य गाइडलाइन जारी की तो ये खतरनाक प्रस्ताव होगा। नेताओं की गिरफ्तारी पर अलग से गाइडलाइन नहीं हो सकती।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। आप चाहें तो याचिका वापस ले सकते हैं। अदालत के लिए ये मुश्किल है। इसके बाद याचिका वापस ले ली गई। सीजेआई ने कहा कि ये कोई ऐसी याचिका नहीं है, जो प्रभावित लोगों ने दाखिल की हो। ये 14 राजनीतिक पार्टियों ने दाखिल की है। देश में वैसे भी सजा की दर कम है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम वैसा नहीं कह रहे हैं। हम चल रही जांच में दखल देने के लिए नहीं आए हैं। हम गाइडलाइन चाहते हैं। सीजेआई ने कहा कि क्या हम इस आधार पर आरोपों को रद्द कर सकते हैं? आप हमें कुछ आंकड़े दें। अंततः एक राजनीतिक नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है। नागरिक के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं। सिंघवी ने कहा कि हम 14 पार्टियां मिलकर पिछले राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में डाले गए 45.19 फीसदी वोटों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 2019 के आम चुनावों में डाले गए वोटों का 42.5 फीसदी था और हम 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता पर काबिज हैं।

सीजेआई ने कहा हम ये आदेश कैसे जारी कर सकते हैं कि तिहरे टेस्ट के बिना गिरफ्तारी न करें। सीआरपीसी में पहले ही प्रावधान है। आप गाइडलाइन मांग रहे हैं, लेकिन ये सभी नागरिकों के लिए होगा। राजनीतिक नेताओं को कोई उच्च इम्यूनिटी नहीं है। क्या हम सामान्य केस में ये कह सकते है कि अगर जांच से भागने/दूसरी शर्तों के हनन की आशंका न हो तो किसी शख्स की गिरफ्तारी न हो। अगर हम दूसरे मामलों में ऐसा नहीं कह सकते तो फिर राजनेताओं के केस में कैसे कह सकते है। राजनेताओ के पास कोई विशेषधिकार नहीं है।

सीजेआई ने कहा कि आपकी याचिका से ये लग रहा है कि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन बहस में आप कह रहे हैं कि नेताओं को गिरफ्तारी से बचाया जाए। ये कोई हत्या या यौन प्रताड़ना का केस नहीं है। सीजेआई ने आगे कहा कि आप ऐसे केस में हमारे पास आ सकते हैं, जहां एजेंसियों ने कानून का पालन नहीं किया है। हमने जमानत आदि को लेकर गाइडलाइन जारी की है, लेकिन वो सब तथ्यों के आधार पर जारी की थी। हम ऐसी गाइडलाइन कैसे जारी कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति अपना केस लाता है तो हम कानून के मुताबिक फैसला करते हैं।

14 राजनीतिक दलों ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया गया था। याचिका में जांच एजेंसियों को लेकर भविष्य के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई थी। साथ ही ईडी, सीबीआई पर भी सवाल उठाए गए थे। राजनीति पार्टियों ने याचिका में कहा कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कराया जा रहा है। लिहाजा जांच एजेंसियों और अदालतों के लिए गिरफ्तारी और रिमांड पर गाइडलाइन बनाई जाए। विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करने में केन्द्रीय जांच एजेंसिंयों के मनमाने इस्तेमाल के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में चौदह राजनीतिक दलों की याचिका ने साझा याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। राजनीतिक पार्टियों में डीएमके, राष्ट्रीय जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, आप आदि शामिल थीं।

रिकॉर्ड के अनुसार 2004 से 2014 के बीच दस सालों में 72 नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने मुकदमे दर्ज किए गए। इनमें से 60 फीसदी से भी कम यानी 43 विपक्ष के थे। अब ये दर 95 फीसद हो गई है। ईडी के मामलों में भी यही रुझान है। 2014 से पहले ईडी के शिकंजे में आने वाले विपक्ष के नेताओं का अनुपात 54 फीसदी था, लेकिन 2014 के बाद ये अचानक बढ़ कर 95 फीसदी तक पहुंच गया। याचिकाकर्ता दलों का कहना था कि केंद्र सरकार के इस रवैए से देश में लोकतंत्र खतरे में है। हम मौजूदा जांच को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। इन 14 पार्टियों का कहना था कि पिछले विधानसभा चुनावों में इन दलों को 45.19 फीसदी जन समर्थन मिला। इनकी 11 राज्यों में सरकार भी है। इन्होंने कोर्ट से अपील की कि जिनको अभियुक्त बनाया गया, उसके अपराधिक रिकॉर्ड, सजा के अनुरूप अभियोग की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए। ये देखना चाहिए कि मुलजिम हत्या, हत्या की कोशिश यानी जानलेवा हमला, रेप या फिर आतंकवाद के आरोपों या गतिविधियों में शामिल न हों।

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