
विभीषण ने एक और लंका ढहा दी। राजा ने नाथ को बरबाद कर दिया। और अपने दोस्त को फिर से आबाद। ऐसा ही कुछ सीन बना मध्य प्रदेश के सियासी मंच पर। राजा ने ऐसा रायता फैलाया कि अच्छे-अच्छे निपट गए। राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कांग्रेसी अखाडिय़े देखते रह गए।
ये वही अखाडिय़े हैं, जिन्होंने 2018 में बुजुर्ग नाथ और युवा महाराज को मध्य प्रदेश भेजा था। दोनों को 2019 के विधानसभा चुनाव जीतने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। राजा को प्रदेश की सियासत से दूर रहने को बोला गया था। ताकि वो अपने भाजपाई दोस्त चौहान को फिर से सत्तासीन न करवा दें। नाथ-महाराज की जोड़ी ने मेहनत की। 15 साल बाद कांग्रेस की राज्य में वापसी कराई। राजा यात्रा पर निकल गए। मगर नाथ के सत्ता संभालते ही सक्रिय हो गए। नाथ को पुराने अहसानों का हवाला दिया और बन गए उनके राय-बहादुर।
राजा ने अपनी चलाई, महाराज की बजाई। खुद के दिल पर लगी चोट का चुन-चुनकर बदला लिया। इतना कि महाराज पाला-बदली को मजबूर हो गए। नाथ सरकार गिर गई। पर राजा के कलेजे में ठंडक पड़ गई। एक तीर से दो शिकार जो किए। कांग्रेस आकाओं को जता दिया कि मध्य प्रदेश में यदि वो नहीं, तो कोई और कांग्रेसी भी नहीं टिकेगा। उधर, दोस्त चौहान की फिर से राज पाने की मुराद पूरी कर दी। अब कांग्रेस का दूसरा वनवास भले ही शुरू गया हो, लेकिन राजा अपनी सियासी सक्रियता छह साल और जारी रखने के इंतजाम में जुट गए हैं। राज्यसभा सदस्य बनकर।