
ग्वालियर महाराज की पाला बदली ने राजस्थान के को-पायलट की स्थिति मजबूत कर दी। दुखी कांग्रेस आकाओं की नजर में वो चढ़ गए हैं। आशंका तो ये थी कि महाराज की तरह को-पायलट राजस्थान में गुल न खिला दें, क्योंकि महाराज ने कांग्रेस छोडऩे से पहले उनसे करीब आधे घंटे मंत्रणा की थी।
किंतु को-पायलट मंझे हुए शातिर निकले। राजस्थान में मध्य प्रदेश के दोहराव की अटकलें शुरू होते ही, उन्होंने इस पर विराम लगा दिया। साफ कर दिया कि दुख की इस घड़ी में वह कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े हैं। को-पायलट वैसे भी महाराज की तरह तनहा नहीं किए गए हैं। वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज के उपमुखिया पदों पर बिराजे हुए हैं। इस प्रकार सत्ता-संगठन दोनों में उनकी दमदार भागीदारी है।
अब मध्य प्रदेश प्रकरण के बाद को-पायलट और मजबूत इस लिए भी हुए है, क्योंकि कांग्रेस महाराज के बाद उन्हें नहीं खोना चाहेगी। लिहाजा उनकी पूछ-परख बढ़ी है। राज्य सरकार के मुखिया भी आपसी बैर फिलहाल टाल कर उन्हें राजी रखने में जुट गए बताते है। मतलब साफ है, को-पायलट का रास्ता साफ है।