
— डॉ. ऋषि भार्गव —
आंवला सर्दी के मौसम में बहुतायत से मिलता है। यह करीब-करीब भारत के सभी भागों में मिल जाता है। हरे रंग का यह फल कुछ ललाई लिया हुआ होता है और विटामिन-सी का बहुत अच्छा स्त्रोत है।
आंवला में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में विद्यमान होता है। कच्चा आंवला और आंवले का रस हमारे शरीर में विटामिन-सी की कमी पूरी करता है। इंग्लिश में इसको ‘इंडियन गूस बेरी’ कहते हैं।
आंवले का उपयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। यह कच्चा भी खाया जा सकता है। आंवले की चटनी भी बनती है, मुरब्बा बनता है, अचार बनता है और इसके अंदर विटामिन-सी की प्रचुर मात्रा होने के कारण इसे दवाई बनाने के काम में भी लिया जाता है।
आयुर्वेदिक दवाईयों में इसका उपयोग खूब होता है। खासतौर पर दो प्रमुख आयुर्वेदिक दवाईयां च्यवनप्राश और ब्रह्म रसायन में तो आंवला प्रमुख रूप से होता है। सूखे हुए आंवले को पानी में भिगोकर इसका पानी आंखें धोने के लिए काम में लिया जाता है। माना जाता है कि इससे आंखों की रोशनी में बहुत अच्छी बढ़ोतरी होती है। आंखों में खुजली होने तथा सूजन आ जाने पर भी इसके पानी से आंखों को धोने पर खूब आराम मिलता है। आयुर्वेद की एक और महत्वपूर्ण दवा त्रिफला में भी आंवले का ही प्रयोग होता है। त्रिफला का एक तिहाई हिस्सा तो आंवले का ही होता है। शरीर में कब्ज होने पर त्रिफला का सेवन किया जाता है।
आंवले का चूर्ण भिगोकर उसे बालों में भी लगाया जाता है। यह नुस्खा बालों को झडऩे से रोकता है, बालों को मजबूत करता है और बालों में वृद्धि करता है। इसको लगाने से बाल काले भी होने लगते हैं।
शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भी आंवले का खूब उपयोग किया जाता है। कोरोना काल में आंवले की इसी खासियत के कारण इसका खूब उपयोग हुआ।
आंवले में इतने गुण होने के कारण इसकी पूजा भी की जाती है। कार्तिक की नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। इसके दान का भी भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व बताया गया है। यदि आंवले का रोज सेवन किया जाए तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है।