सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर पूछा है कि मुफ्त तोहफे देने का वादा कर वोटर्स को लुभाना कितना सही है। सुप्रीम कोर्ट भाजपा नेता की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन और चुनाव चिन्ह रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो चुनाव से पहले जनता के पैसों से मुफ्त में तोहफे देने का वादा करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले बीजेपी के अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इससे जुड़ा कानून बनाने के लिए भी केंद्र सरकार को निर्देश देने की भी मांग की है। सीजेआई एनवी रमन्ना, जस्टिस एएस बोपन्ना और हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि याचिका के जरिए गंभीर मुद्दा सामने आया है। सीजेआई ने कहा, यह एक गंभीर मुद्दा है। मुफ्त बजट, रेग्युलर बजट से भी बड़ा होता है। भले ही यह भ्रष्ट प्रथा नहीं है, लेकिन यह असमानता के हालात बनाता है।
सीजेआई ने याचिकाकर्ता को हलफनामे में केवल दो दलों का नाम लिखने पर फटकार लगाते हुए कहा कि आपने केवल चुनिंदा पार्टियों और राज्यों का नाम लिया है। जस्टिस कोहली ने कहा कि आप बहुत सिलेक्टिव रहे हैं। हालांकि कोर्ट ने फिर भी याचिका में उठाए गए लीगल इश्यू को देखते हुए नोटिस जारी कर दिया। याचिकाकर्ता ने कहा कि पैसे का वितरण और मुफ्त तोहफे का वादा खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। उपाध्याय ने ये निर्देश जारी करने की भी अपील की है कि वोटर्स को लुभाने के लिए चुनाव से पहले जनता के पैसों से तर्कहीन मुफ्त में उपहारों को देने का वादा संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन है। यह आईपीसी की धारा 171बी और 171सी के तहत रिश्वत की श्रेणी में भी आता है।
याचिकाकर्ता ने चुनाव चिह्न आदेश 1968 के पैरा 6ए, 6बी और 6सी में एक अतिरिक्त शर्त जोड़ने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की भी अपील की, जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल चुनाव से पहले जनता के पैसों से तर्कहीन मुफ्त उपहार देने का वादा नहीं करेगा और न ही बांटेगा।
