
सियासी अपराधी रातों-रात शरीफ बन गया। जाहिर है, ये ट्रांस्फॉर्मेशन अदालत के गले नहीं उतरा। उसने अड़ लगा दी। वाकया गुजरात का है। वहां एक मेट्रोपॉलिटन अदालत ने गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल से जुड़े एक आपराधिक मामले को वापस लेने का आवेदन खारिज कर दिया।उसके बाद अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दे दी।उसने इस अदालत के फैसले को कानून के प्रावधान के विपरीत और गलत बताया।
विचाराधीन मामला 20 मार्च, 2017 का है। मामले में हार्दिक के खिलाफ नगर पार्षद परेश पटेल ने रमोल पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई थी। एफआईआर में हार्दिक और 18 अन्य पर दंगा और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया। परेश पटेल ने आरोप लगाया था कि भीड़ ने आधी रात को उनके घर पर हमला किया, उनकी नेमप्लेट और झंडा जला दिया।साथ ही उन्हें और उनके परिवार को गालियां भी दीं।
उन्होंने शिकायत में हार्दिक पटेल और गीता पटेल सहित पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के अन्य 15 लोगों का नाम लिया। मामले में 21 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था और इनमें से 19 के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है। इसी मामले में हार्दिक पटेल की डिस्चार्ज अर्जी खारिज कर दी गई। मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने मामले को वापस लेने के लिए सरकार के आवेदन को स्वीकार नहीं किया।आवेदन में कहा गया था कि सरकार यह स्थापित नहीं कर सकी कि इसे वापस लेना जनहित में और न्याय के हित में है। कोर्ट ने कार्यवाही को आगे बढ़ाने का फैसला और अगली सुनवाई 2 मई के लिए तय कर दी।
कोर्ट के फैसले के खिलाफ लोक अभियोजक सुधीर ब्रह्मभट्ट ने एक पुनरीक्षण याचिका दायर किया, जिसमें कहा गया कि कथित अपराध केंद्र सरकार के खिलाफ नहीं किया गया था, न ही दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत स्थापित कोई जांच एजेंसी इसकी जांच कर रही थी। इस मामले में केंद्र सरकार की कोई संपत्ति क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी। इसलिए, राज्य सरकार सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मामले को वापस लेने की मांग कर सकती है।
उल्लेखनीय है कि हार्दिक पटेल के इनदिनों कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने का चर्चा है। ऐसे में गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा उनके खिलाफ केस वापस लेने की पहल को इस पालाबदली से जोड़ कर देख जा रहा है।