अनोखे तरीके से लगाते बारिश का अनुमान

राजस्थान में भीषण गर्मी के बीचगांवों में इस साल होने वाली बारिश और अकाल का अनोखा आंकलन शुरू हो गया है। लोग परंपरागत तरीकों से मानसून के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं।

इसके लिए पश्चिमी राजस्थान के लोग परंपरागत वेशभूषा पहनकर बारिश (अकाल-सुकाल) पर विचार करने के साथ हल को घंटी बांधकर खेत में चलाते हैं। इसे शगुन कहा जाता है। साथ ही मिट्टी के कच्चे बरतन में पानी डालकर मानसून का अनुमान लगाते हैं। सफेद और काली रुई से अकाल और सुकाल का पता करते हैं। अमावस्या से लेकर अक्षय तृतीया के बीच किसान ऐसे ही जतन कर बारिश का अनुमान लगाते हैं।

बाड़मेर के तारातरा गांव में भी इस पारंपरिक तरीके से बारिश और अकाल का अनुमान लगाया गया।

यह परंपरा सदियों पुरानी है। इस दौरान दादा, बेटा व पोता एक साथ बैठकर विचार करते हैं। दिन में बाजरे की खीच का लुत्फ उठाते उन्होंने आने वाले समय में बरसात के शगुन का अनुमान लगाया। सावन में बारिश के शगुन हुए औऱइस माह में मूसलाधार बारिश होने की उम्मीद बनी।

बारिश की संभावनाओं को देखने के लिए तारातरा गांव के लोग पिछले दिनों एकत्रित हुए। रेबारी समाज में सात पीढ़ी से यह परंपरा चली आ रही है। बारिश का समय देखने को शगुन करते हैं। परंपरागत वेशभूषा पहन कर बुजुर्ग, जवान अलग-अलग तरीके से बारिश का अनुमान लगाते हैं।शगुन के जरिए बारिश का अनुमान लगाने के लिए पहले पांच मिट्‌टी के कुल्हड़ बनाए गए। इनके नाम जेठ, आषाढ, सावन, भादवों, आसौद रखे गए। इनमें समान मात्रा में पानी भरा गया। जो कुल्हड़ पानी के दबाव में सबसे पहले फूटा, उसी माह में बारिश का शगुन होता है। इस बार सबसे पहले सावन माह (15 जून से 15 जुलाई) का कुल्हड़ फूटने से किसानों ने सावन में मूसलाधार बारिश होने की उम्मीद जताई है।

एक औऱ तरीके से किसान एक परात में पानी भरकर सफेद व काली रूई को इसके अंदर डालते है। सफेद रूई का मतलब सुकाल और काली रूई का मतलब अकाल होता है। दोनों को पानी के अंदर रखा जाता है। जो रूई पहले डूब जाती है, उसे अनुमान लगाया जाता है कि इस साल अकाल होगा या सुकाल। किसानों ने शगुन विचारने पर बताया कि सभी जगह एक समान स्थिति नहीं रहने वाली है। कहीं अकाल दिखेगा तो कहीं सुकाल। किसानों ने सभी जगह 60-70 फ़ीसदी अच्छी बारिश की उम्मीद जताई है।

तीन दिवसीय अक्षय तृतीय के त्यौहार के पहले दिन हाळी अमावस्या को शगुन के तौर पर खेतों में हल जोते गए।इस दौरान बच्चों व युवाओं को टोकरा बांधकर परंपरागत गीतों के साथ सूखे खेतों में हल चलवाया जाता है।यह आगामी बारिश के आने से पहले शगुन विचारने का तरीका है।इसके बाद घरों से महिलाएं बाजरे का खीच बनाकर लाती हैं।अमावस्या से हल चलना शुरू होता है और इस दिन बच्चों को सिखाया जाता है कि हल को किस तरीके से चलाते है। इसे पीढ़ी-दर-पीढी सिखाते हैं। ऊंट को कैसे लेकर चला जाता है आदि।

बुजुर्ग किसान कहते हैं कि यह परंपरा आगे भी जीवित रहे, इसलिए आने वाली पीढ़ी को सिखाया जाता है।उनका दावा है कि शगुन देखने पर जो अनुमान लगाया जाता है, यह 100 फीसदी सटीक बैठता है।

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