उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में एक स्थानीय अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। अब 19 मई को फैसला सुनाया जाएगा। अदालत में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई है, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है।
याचिका में अदालत की निगरानी में विवादित जगह की खुदाई करने की मांग भी गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि खुदाई की एक जांच रिपोर्ट पेश की जाए। दावा किया गया है कि जिस जगह पर मस्जिद बनाई गई थी, उसी जगह पर कारागार मौजूद है, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। अगर खुदाई कराई जाएगी तो यह बात साबित हो जाएगी। इसी विवाद पर कई और याचिकाएं भी अलग-अलग कोर्ट में दायर की गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें कृष्ण जन्मभूमि की जमीन को समझौते के जरिये मस्जिद को देने को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं के साथ धोखा करके कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की संपत्ति बिना किसी कानूनी अधिकार के अनधिकृत रूप से समझौता करके शाही ईदगाह को दे दी गई जो कि गलत है। कोर्ट घोषित करे कि श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान की ओर से 12 अगस्त, 1968 को शाही ईदगाह के साथ किया गया समझौता बिना क्षेत्राधिकार के किया गया था।
मथुरा की एक अदालत ने ‘ठाकुर केशव देव महराज बनाम शाही मस्जिद ईदगाह इंतजामिया कमेटी’ के वाद में सुनवाई स्थगित करने की मांग के लिए याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाया था। इस याचिका में कहा गया था कि शाही ईदगाह ठाकुर केशवदेव महाराज कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ भूमि पर बनाई गई है तथा श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह मैनेजमेंट कमेटी के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत है, क्योंकि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान उक्त सम्पत्ति का मालिक ही नहीं है। उसे इस प्रकार का कोई भी समझौता किसी के साथ करने का वैधानिक अधिकार ही नहीं है।
इस आधार पर उक्त डिक्री को खारिज कर उक्त भूमि उसके वास्तविक मालिक श्रीकृष्ण जन्भभूमि ट्रस्ट को सौंप दी जानी चाहिए। इस मामले में उन्होंने शाही ईदगाह मैनेजमेंट कमेटी के सचिव, उप्र सुन्नी सेण्ट्रल वक़्फ बोर्ड के चेयरमैन, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया था।
