
लगातार बढ़ रही महंगाई के बीच बहुत सारी कंपनियों ने अपने पैकेट्स के दाम तो नहीं बढ़ाए, लेकिन पैकेट्स में आने वाले सामान को कम कर दिया है। भुजिया हो या साबुन, रोजमर्रा इस्तेमाल की लगभग सभी चीजों में यही खेल हुआ है।
इनके पैकेट या पैक हल्के होने के पीछे वजह तो महंगाई ही है, लेकिन अपने उत्पाद की मांग बरकरार रखने के लिए लगभग सभी कंपनियों ने यही रणनीति अपनाई है। पैक हल्का होने पर ग्राहक को महंगाई एक झटके में महसूस नहीं होती, जबकि रेट बढ़ा देने से महंगाई साफ दिखने लगती है।तब संभव है कि ग्राहक वह सामान खरीदना ही बंद कर दे।कंपनियां तय दाम आइटम के वजन को कम करके उच्च लागत मूल्य को एडजस्ट कर रहीं हैं। उन्होंने कम आय वाले और ग्रामीण क्षेत्र के ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए उत्पादों की कीमत बढ़ाने के बदले आकार या वजन कम करने का फंडा अपनाया है। खाद्य तेलों, अनाज और ईंधन की बढ़ती कीमतों के बीच यूनिलीवर पीएलसी, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, डाबर इंडिया लिमिटेड सहित अन्य कंपनियां अपने सबसे सस्ते पैकेजों को हल्का कर रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियों की ओर से पैकेट का वजन कम करना भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। अमेरिका में सबवे रेस्टोरेंट, डोमिनोज़ पिज्जा सहित अन्य कंपनियों ने लागत कम करने के लिए उत्पाद को छोटा करने की ही रणनीति अपनाई है। कंपनियों ने यह रणनीति ऐसे वक्त अपनाई है, जबकि पिछले 4 महीनों से महंगाई रिजर्व बैंक के 6 फीसदी लक्ष्य की ऊपरी सीमा को पार कर गई है। अप्रैल में महंगाई दर 8 साल के उच्च स्तर करीब 7.8 फीसदी पर पहुंच गई है।