
महाराणा प्रताप सेना केअजमेर दरगाह में स्वास्तिक चिह्न के दावे को दरगाह कमेटी ने गलत बताया है। समिति का ओर से कहा गया है कि इस तरह का कोई निशान दरगाह में नहीं है। पड़ताल में भी दरगाह में कोई निशान नहीं मिला है। प्रताप सेना की ओर से जो फोटो दिखाया गया, वह ढाई(अढ़ाई) दिन के झोपड़े का है।
ढाई दिन के झोपड़े में प्रताप सेना की ओर से दिखाए फोटो जैसा स्वास्तिक दिखाई दिया। एक खिड़की पर यह बना हुआ था, लेकिन इसका दरगाह से किसी तरह का संबंघ नहीं मिला।
कमेटी दीवान के बेटे सैयद नसरूदीन चिश्ती ने कहा कि दरगाह 800 साल से गंगा जमुना तहजीब का सबसे बड़ा स्थल है। यह धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाला काम है। इस पर चर्चा की है, जो भी कानूनी कार्रवाई होगी, की जाएगी। यह लोकप्रियता पाने के लिए किया गया प्रयास है और हम इसका खंडन करते हैं।
महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवर्धन सिंह परमार ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजे पत्र में बताया था कि अजमेर स्थित हजरत ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह हमारा प्राचीन हिंदू मंदिर है। वहां की दीवारों व खिड़कियों में स्वास्तिक व अन्य हिंदू धर्म से संबंधित चिह्न मिले हैं। महाराणा प्रताप सेना की मांग है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से सर्वे कराया जाए।
अजमेर दरगाह के हिंदू मंदिर होने के दावे के बाद अंजुमन सैयद जादगान के सदर हाजी सैयद मोइन हुसैन चिश्ती ने कहा कि इस दावे में कोई सच्चाई नहीं और न ही कोई आधार है। ऐसा करके करोड़ों लोगों की आस्था पर सवाल उठाया है। यहां मुस्लिम तो आते ही हैं, अन्य मजहब के लोग भी यहां आते हैं। इस चिह्न को दरगाह में नहीं देखा और कोई ताल्लुक नहीं है।उन्होंने ढाई दिन के झोपड़े पर चिह्न के होने के सवाल पर कहा की इस तरह का कोई भी चिह्न दरबार में नहीं देखा। अब यह जहां कहीं भी हो यह आप जाकर देखें। उन्होंने दरगाह के अंदर चिह्न होने के दावे को सीधे तौर पर खारिज किया है। दरगाह कमेटी के सदस्य बाबर चिश्ती ने कहा कि ऐसे लोग करोड़ों लोगों के जज्बात को ठेस पहुंचा रहे हैं। इनके खिलाफ सरकार व प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए।