

राजस्थान से राज्यसभा चुनावों में बिजनेसमैन सुभाष चंद्रा के भी नामांकन भरने से मुकाबला रोचक हो गया है। आज सुबह भाजपाप्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने चंद्रा के पहले पार्टी प्रत्याशी होने की जानकारी दी। बाद मेंराजेंद्र राठौड़ ने मीडिया को उनकेभाजपासमर्थक के तौर पर मैदान में उतरने की बात कही।
चंद्रा ने भाजपासमर्थक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भरा। इससे पहले विधानसभा की ना पक्ष लॉबी में सुभाष चंद्रा ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के अलावा भाजपा के कई विधायकों से मुलाकात की। वह सोमवार देर रात ही जयपुर पहुंच गए थे।
सुभाष चंद्रा हरियाणा से निर्दलीय राज्यसभा सांसद हैं, अब उनका टर्म पूरा हो रहा है। हरियाणा में नंबर गेम इस बार पक्ष में नहीं होने के कारण उन्होंने राजस्थान से भाजपासमर्थन से राज्यसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है।
मौजूदा संख्या बल के हिसाब से भाजपाएक सीट पर जीत रही है। दूसरी सीट के लिए उसे 11 वोट और चाहिए। पार्टीने घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है। अब सुभाष चंद्रा के भी नामांकन दाखिल करने सेकांग्रेस-निर्दलीय विधायकों में तोड़फोड़ का संभावना बढ गई है। देखा जाए तो सीधे तौर पर समीकरण चंद्रा के पक्ष में नहीं है।
भापजाके 71 विधायक हैं। एक सीट जीतने के लिए 41 विधायकों के वोट चाहिए। दो उम्मीदवारों के लिए 82 वोट चाहिए। अभी भाजपासमर्थक दूसरे उम्मीदवार को जीतने के लिए 11 वोट कम पड़ रहे हैं। अगर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के 3 विधायकों का समर्थन भाजपाको मिलता है तो कुल संख्या 74 हो जाती है। फिर दूसरे उम्मीदवार के लिए 8 वोटों की कमी रहती है। कांग्रेसी खेमे में सेंध लगाकर आठ वोट का प्रबंध करने पर ही भाजपासमर्थक दूसरा उम्मीदवार जीत सकता है।
कांग्रेस के रणनीतिकार कांग्रेस के 108, 13 निर्दलीय, एक आरएलडी, दो सीपीएम और दो बीटीपी विधायकों को मिलाकर 126 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं। इसलिए मुकाबला बहुत रोचक है। कांग्रेसी खेमे से BJP कुछ निर्दलीयों और नाराज कांग्रेस विधायकों में सेंध लगाने के प्रयास में है।
सुभाष चंद्रा के राजस्थान से राज्यसभा के उम्मीदवार बनने से एक बार फिर हरियाणा के पेन चेंज कांड की यादें भी ताजा हो गई हैं। 2016 में हरियाणा के राज्यसभा चुनाव में भाजपाने निर्दलीय के तौर पर सुभाष चंद्रा को बाहर से समर्थन दिया था।कांग्रेस और इनेलो ने सुप्रीम कोर्ट के वकील आरके आनंद को उम्मीदवार बनाया था। संख्या बल सुभाष चंद्रा के पक्ष में नहीं था, लेकिन 14 कांग्रेस विधायकों के वोट गलत पेन यूज करने की वजह से रद्द हो गए थे।
राज्यसभा चुनावों में वोटिंग बैंगनी स्याही के पेन से होती है। वोटिंग के दौरान रणनीतिक रूप से किसी ने बैंगनी स्याही की जगह ब्ल्यू स्याही वाला पेन रख दिया। 14 कांग्रेस विधायकों ने गलत स्याही से वोट किया, जिसके बाद उनके वोट रद्द हो गए। इससे कम वोट होते हुए भी सुभाष चंद्रा जीत गए और कांग्रेस उम्मीदवार हार गया। इस पर भारी विवाद हुआ था।
आरके आनंद ने धांधली का आरोप लगाते हुए कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर अभी भी केस चल रहा है। राजस्थान में संख्या बल सुभाष चंद्रा और भाजपाके पक्ष में नहीं है, लेकिन राजनीतिक हलकों में राजस्थान में हरियाणा का छह साल पुराना किस्सा दोहराने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।सुभाष चंद्रा ने यहां नामांकन के बाद जीत का दावा किया है। उन्होंने कहा- मैंने चुनाव लड़ने से पहले निर्दलीयों से बात की है। पहले भाजपा के आलाकमान से इजाजत ली, फिर निर्दलीयों से बातचीत करके ही चुनाव मैदान में उतरा हूं। मैं बाहरी नहीं, राजस्थान का जाया जन्मा हूं।
घनश्याम तिवाड़ी ने बीजेपी और सुभाष चंद्रा ने भाजपा समर्थक निर्दलीय के तौर पर नामांकन दाखिल किया। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया तिवाड़ी के प्रस्तावक बने। निर्दलीय सुभाष चंद्रा के प्रस्तावकों में नरपत सिंह राजवी, वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल रहे।
कांग्रेस के तीनों राज्यसभा उम्मीदवारों मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी ने भी आज नामांकन भर दिए। प्रमोद तिवारी को तीसरे नंबर पर रखा है। तीनों उम्मीदवार नामांकन से पहले पीसीसी गए, जहां उनका स्वागत किया गया।भाजपासमर्थक उम्मीदवार के तौर पर चंद्रा के नामांकन करने के साथ ही राज्यसभा चुनाव की बाड़ेबंदी पर भी फैसला हो जाएगा। कांग्रेस और भाजपा आज-कल में अपने-अपने विधायकों की फाइव स्टार होटलों में बाड़ेबंदी कर सकते हैं। विधायकों को सुरक्षित एक जगह रखने के लिए बाड़ेबंदी तय मानी जा रही है।
इससे पहले, राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन के अंतिम दिन प्रदेश भाजपा ने एक बार फिर एकजुट होने का सन्देश दिया। विधानसभा में पार्टी प्रत्याशियों के नामांकन के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया समेत तमाम वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी रही। खासतौर से चर्चाएं कभी धुर विरोधी रहे घनश्याम तिवाड़ी और वसुंधरा राजे के बीच की नज़दीकियों के साथ ही पूनिया-राजे की एक साथ मौजूदगी को लेकर रही।