बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर कोई पत्नी काम पर जाने की इच्छा व्यक्त करती है, तो इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। संबंधित मामले में महिला के पति ने कोर्ट में तलाक लेने के लिए याचिका दायर की थी।
जस्टिस अतुल चंदुरकर और उर्मिला जोशी-फाल्के की पीठ ने तलाक की मांग करने वाली पति की याचिका पर सुनवाई की। याचिकर्ता ने दावा किया गया था कि उसकी पत्नी अक्सर काम पर जाने के लिए उससे झगड़ा करती है और धमकी देती है कि वह तब तक बच्चा नहीं पैदा करेगी जब तक कि उसकी नौकरी सुरक्षित नहीं हो जाती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, मौजूदा मामले में पत्नी द्वारा नौकरी की इच्छा व्यक्त करना, जो अच्छी तरह से योग्य भी है, को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। पति ने उस समय और तरीके के बारे में सबूत नहीं पेश किये, जिसमें उसने परेशान करने का आरोप लगाया है।। बेंच ने आगे कहा कि पति द्वारा कथित क्रूरता का एक और आधार यह था कि उसकी पत्नी ने उसकी सहमति के बिना गर्भपात कराया। लेकिन कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने अपनी गर्भावस्था के कारण ट्यूशन क्लासेस लेने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इस प्रकार वह अपने बच्चे की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार थी। फिर भी यह उसका विशेषाधिकार है कि गर्भावस्था को जारी रखा जाए या नहीं। भारत के संविधान के मुताबिक महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
पति ने याचिका में तलाक का दूसरा आधार पत्नी द्वारा उसे छोड़कर भागना बताया गया था। उन्होंने दावा किया कि पत्नी ने शादी के चार साल के भीतर ही अपना घर छोड़ दिया था। इसपर कोर्ट ने कहा कि पति की ओर से उसे ससुराल वापस लाने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं किए गए। यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि पत्नी स्थायी रूप से संबंध समाप्त करना चाहती थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट बेंच ने तलाक की मांग करने वाली पति की याचिका को खारिज कर दिया।
