दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चियों से दुष्कर्म को लेकर कठोर कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ितों लिए मुआवजे का निर्धारण करते समय इस कानून के तहत निर्धारित अधिकतम 7 लाख रुपए के मुआवजे को न्यूनतम आधार माना जाना चाहिए। दरअसल बाल यौन शोषण के एक मामले में अदालत ने सीधा सवाल किया कि आखिर कोई कैसे बलात्कार पीड़िता की पीड़ा के लिए प्राइस टैग लगा सकता है?
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, मुआवजे की चाहे कोई भी राशि हो, पीड़िता की पीड़ा को यह कभी भी कम नहीं कर सकती। इतना जरूर हो सकता है कि उसे मिलने वाला आर्थिक मुआवजा उसके पुनर्वासन में थोड़ा बहुत सहायक बन जाए। जस्टिस जसमीत सिंह ने निर्देश दिया कि अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने के 60 दिनों के अंदर मुआवजे के रूप में अधिकतम राशि का 25 प्रतिशत का भुगतान करना होगा और मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत मुआवजा संबंधी मुकदमे का निर्धारण करेगी।
अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना अधिकतम और न्यूनतम मुआवजे की राशि प्रदान करती है। इस लिए अदालत ने टिप्पणी की कि विधि या योजना के तहत अधिकतम मुआवजा राशि का निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए।
