2012 में दिल्ली के छावला में हुए गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चौंकाने वाला फैसला दिया। कोर्ट ने गैंगरेप के 3 दोषियों को बरी कर दिया, जबकि हाईकोर्ट और निचली अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मृतका के परिजन औऱ सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने घोर निराशा व्यक्त की है। इन्होंने न्याय से भरोसा टूटने तक की बात कही है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 19 साल की लड़की से गैंगरेप के मामले में फांसी की सजा सुनाते हुए दोषियों के लिए बेहद तल्ख टिप्पणी की थी। हाईकोर्ट ने कहा था- ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया है। 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने कहा था, भावनाओं को देखकर सजा नहीं दी जा सकती है। सजा तर्क और सबूत के आधार पर दी जाती है। हम आपकी भावनाओं को समझ रहे हैं, लेकिन भावनाओं को देखकर कोर्ट में फैसले नहीं होते हैं। आज शीर्ष कोर्ट के सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने दोषियों को बरी कर दिया है।
इस फैसले पर निराशा जताते हुए मृतका की मां ने कहा, हमें उम्मीद थी कि न्याय मिलेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमें तोड़ दिया है। समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। हमारी सोचने की ताकत खत्म हो गई है। 19 साल की बेटी के साथ गैंगरेप कर उसकी हत्या करने वाले आरोपियों के खिलाफ एक मां ने 10 साल लड़ाई लड़ी। आज अपनी नजरों के सामने सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बरी होते देख वह ठीक से रो भी नहीं पा रही है।
बताते चलें कि 19 साल की कल्पना (बदला हुआ नाम) को 2012 में दिल्ली के छावला से किडनैप किया गया था। इसके बाद उसे हरियाणा के रेवाड़ी ले जाकर 3 दिन तक गैंगरेप किया गया। आरोपी इतने पर भी न माने और उनके चेहरे को तेजाब से जला दिया, उसके बदन को गर्म लोहे से दागा। पुलिस को जब शव बरामद हुआ तो प्राइवेट पार्ट से एक शराब की बोतल भी मिली।
इस मामले में पहले स्थानीय अदालत और फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित परिवार के सदस्य हैरान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए अब कहां जाएं।
इस मामले को उठाने वाली एंटी रेप कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, हमने सोचा भी नहीं था कि अदालत ऐसा फैसला करेगी। हम ज्यादा से ज्यादा ये सोच रहे थे कि हो सकता है, फांसी की सजा को कोर्ट उम्रकैद में बदल सकता है। हालांकि, हम उसके लिए भी तैयार नहीं थे। हम उसके खिलाफ भी आवाज उठाते। अब फैसले से न्यायपालिका में हमारा भरोसा ही टूटा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बस इतना ही बताया है कि अभियुक्तों को बाइज्जत बरी और रिहा किया जा रहा है। उन्हें किस आधार पर बरी किया गया है, ये नहीं बताया गया है।
कल्पना के साथ जब ये हादसा हुआ था, तब उसकी उम्र 19 साल थी। 9 फरवरी 2012 को काम से घर लौटते वक्त उसे अगवा कर लिया गया था। तीन दिन तक गैंगरेप के बाद उनकी हत्या कर दी गई। उनका परिवार दिल्ली के छावला में एक छोटे से किराये के कमरे में रहता है। पिता सिक्योरिटी गार्ड हैं और बेटी की मौत के बाद रिटायर हो जाने की उम्र में भी परिवार चलाने के लिए नौकरी कर रहे हैं।
