पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। घरों में उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल से लेकर बीमारी के उपचार में उन्हें दूसरे पायदान पर संतोष करना पड़ता है। इनमें ज्यादा पीड़ित विधवा और बुजुर्ग महिलाएं हैं।
यह खुलासा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) इंदौर के एक अध्ययन में हुआ है। आइआइएम के सुतीर्थ बंदोपाध्याय ने बिपाशा मैती के सहयोग से यह स्टडी की। इनकी रिपोर्ट के अनुसार महिलाएं भेदभाव का शिकार होती रही हैं, लेकिन पुरुषों की तुलना में खासतौर से विधवा और बुजुर्ग महिलाओं को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इस अध्ययन में पूर्व में हुए कुछ शोधों का भी हवाला दिया गया है। इसमें बताया गया है कि विधवा और उम्रदराज महिलाओं के स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च भी काफी कम है। जब किसी बीमारी के चलते लंबे समय तक दवाइयां और समय-समय पर जांचों की जरूरत होती है, तब तो कई को इलाज तक नहीं मिल पाता है। बुजुर्ग पुरुषों की तुलना में बुजुर्ग महिलाओं का कम ध्यान रखा जा रहा है।
अध्ययन में ऐसी महिलाओं की स्थिति सुधारने के सुझाव भी दिए हैं। इसमें सबसे अहम सुझाव ऐसी नीति बनाने का है, जिनसे बुजुर्ग व विधवा महिलाओं को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके। अप्रत्यक्ष तरीके से मिलने वाले लाभ परिवार तक तो पहुंचते हैं, लेकिन इनसे इन महिलाओं को राहत नहीं मिल रही है।
अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि घरों में महिलाओं के प्रति काफी असमानताएं हैं। कोविड-19 ने हर वर्ग के लोगों को चपेट में लिया। इस महामारी में भी विधवाओं व उम्रदराज महिलाओं की अनदेखी हुई है, जबकि बुजुर्ग महिलाएं भी बड़ी संख्या में कोविड की चपेट में आई थीं। आइसोलेशन से लेकर दवाइयों और अन्य जांचों में भी उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हुआ।
