राजस्थान में कांग्रेस सरकार के समय ज्यादातर आईएएस अधिकारी राज्य से बाहर का रुख कर लेते हैं। अधिकारीगण कांग्रेस नेताओं की कार्यशैली से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। सरकार के मंत्रियों और विधायकों से उनकी तनातनी अक्सर खबर बनी रहती है। यही वजह है कि कांग्रेस के सत्त्ता में आते ही आईएएस अधिकारियों की कमी बढ़ने लग जाती है।
वैसे तो आईएएस अधिकारी केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाते रहते हैं, लेकिन भाजपा राज में उतने नहीं जाते, जितने कांग्रेस सरकार के समय राज्य से बाहर का रूख करते हैं। वर्तमान में राजस्थान काडर के 29 आईएएस अधिकारी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति, विदेश में स्टडी, अपने होम स्टेट की सेवा में प्रतिनियुक्ति पर हैं। कई अधिकारी तो पांच साल की छुट्टी पर हैं।
जयपुर में कार्यरत एक आईएएस अधिकारी की सुनें तो साफ हो जाएगा कि क्यों ये अधिकारी कांग्रेस राज में काम नहीं करना चाहते हैं। अधिकारी ने कहा कि अशोक गहलोत सरकार में इसबार कांग्रेस की अंदरूनी कलह के चलते सीएम के लिए पार्टी के विधायकों तथा मंत्रियों को खुश रखना मजबूरी बन गई है। इस कारण प्रशासनिक कार्य में कांग्रेस नेताओं का दखल इतना बढ गया है कि अधिकारियों को असहज महसूस होने लगा है। अधिकारीगण का अपना प्रभाव नगण्य हो चला है। वे अपने मातहत कनिष्ठ कर्मचारियों तक को कुछ नहीं कह सकते हैं। यदि किसी कर्मचारी पर लाहरवाही के कारण एक्शन लिया तो वे माफी मांगने की बजाय सीधे विधायकों, मंत्रियों के पास जाकर रोना रोते हैं। तब मंत्री, विधायक या अन्य पार्टी नेता अधिकारियों पर दबाव बनाकर उन्हें संबंधी कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही रोकने को मजबूर कर देते हैं। उन्होने कहा, ऐसे हालात में भला कौन वरिष्ठ अधिकारी राज्य में रुकना चाहेगा।
इसी प्रकार राजस्थान काडर की एक महिला आईएएस अधिकारी में खुद की पीड़ा बताते हुए कहा कि उनका तबादला जब दिल्ली राजस्थान हाउस में किया गया तो उन्होंने तत्कालीन मुख्य सचिव से अपने तबादले को स्थाई होने का आश्वासन पाकर परिवार को भी दिल्ली शिफ्ट कर लिया। मगर शिफ्टिंग के चंद दिनों बाद ही इस आईएएस अधिकारी को जयपुर में पोस्ट करने की सूचना निकाल दी गई। इस घटनाक्रम से खिन्न महिला अधिकारी ने केन्द्रीय पैनल में खुद को शामिल करवा कर दिल्ली स्थित एक मंत्रालय में नियुक्ति पा ली।
ये चंद उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट हो जाता है कि आईएएस अधिकारी कांग्रेस की सरकार में घुटन महसूस कर राजस्थान से बाहर जाने को तत्पर रहते हैं। हालांकि किसी पार्टी की सत्ता मंु अहम पद संभालने वाले अधिकारियों को दूसरी पार्टी के राज में बर्फ में लगाने का चलन तो पुराना है, लेकिन मौजूदा कांग्रेस राज में जिस तरह का तनावपूर्ण माहौल बना है, उससे बाहर निकलना ही आईएएस अधिकारियों को बेहतर विकल्प लग रहा है। वरिष्ठ औऱ कुशल आईएएस अधिकारियों की कमी के चलते राज्य में सरकारी कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
एक समस्या यह भी है कि जितने आईएएस राजस्थान को चलाने के लिए चाहिए और जितने मिल रहे हैं, उससे ज्यादा संख्या तो रिटायर होने वाले अधिकारियों की है। देश में किसी भी राज्य की तुलना में राजस्थान में आईएएस अधिकारियों की कमी सबसे ज्यादा है। वर्ष 2022 में तो स्थिति और भी खराब हो गई। इस साल अब तक 19 आईएएस अफसर रिटायर हो चुके हैं। अगले 12 महीनों में 15 आईएएस अधिकारी और रिटायर हो जाएंगे। इससे पहले पिछले दो दशक में वर्ष 2009 में ऐसा हुआ था, जब एक ही साल में 15 आईएएस अधिकारी रिटायर हुए थे।
देश में क्षेत्रफल के हिसाब से राजस्थान पहला और आबादी के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा राज्य है। यहां जिलों के बीच दूरी ज्यादा है। भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि दूर-दराज के इलाकों में प्रशासनिक तंत्र को चलाना बहुत मुश्किल है। मुख्यमंत्री गहलोत यह मुद्दा कई बार केन्द्र के सामने उठा चुके हैं। हाल ही कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव हेमंत गेरा ने भी केन्द्र के समक्ष राजस्थान का पक्ष रखा। और आईएएस अधिकारियों की कमी पूरी करने को कहा है। मगर केन्द्र ने उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है।
राजस्थान काडर में आईएएस के 313 पद स्वीकृत हैं। किंतु अभी 248 अधिकारी ही काम कर रहे हैं। जबकि क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से प्रदेश में लगभग 365 आईएएस अधिकारियों का काडर निर्धारित होना चाहिए। देश के जिन तीन राज्यों में तय काडर से 100 पदों से ज्यादा की कमी है, उनमें राजस्थान तीसरे स्थान पर है। उत्तरप्रदेश में 208, बिहार में 123 और राजस्थान में 109 अफसरों की कमी मानी जाती है।
