भ्रष्टाचार मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत की मांग का प्रत्यक्ष सबूत आवश्यक नहीं है। इसे परिस्थितिजन्य सबूत के जरिये भी साबित किया जा सकता है। मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न होने पर पीसी अधिनियम के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है।
कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य/अवैध संतुष्टि की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष की तरफ से प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2, धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत लोक सेवक के अपराध का निष्कर्ष निकालने की अनुमति है। रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने या शिकायतकर्ता की मृत्यु होने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोष साबित हो सकता है। पीठ ने माना कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी दोष को साबित कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक-2018 के दायरे में रिश्वत देने वाले को भी लाया गया है। इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है। लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल से तथा राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी। रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिये 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। जांच में यह भी देखा जाएगा कि, रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।
