रामसेतु होने के पुख्ता साक्ष्य नहीं

रामसेतु को हिंदूओं की आस्था से जोड़ने वाली भाजपा की केन्द्र सरकार ने इसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। संसद में विज्ञान, प्रौद्योगिकी मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच रामसेतु के पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं। सिंह भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के रामसेतु पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा- जिस जगह पर पौराणिक रामसेतु होने का अनुमान जाहिर किया जाता है, वहां की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई हैं। छिछले पानी में आइलैंड और चूना पत्थर दिखाई दे रहे हैं। इससे यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही रामसेतु के अवशेष हैं।

जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा, टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ हद तक हम सेतु के टुकड़े, आइलैंड और एक तरह के लाइम स्टोन के ढेर की पहचान कर पाए हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह पुल का हिस्सा हैं या उसका अवशेष हैं। उन्होंने कहा- मैं यहां बता दूं कि उनका अंतरिक्ष विभाग इस काम में लगा हुआ है। रामसेतु के बारे में जो सवाल हैं तो मैं बताना चाहूंगा कि इसकी खोज में हमारी कुछ सीमाए हैं। वजह यह है कि इसका इतिहास 18 हजार साल पुराना है। अगर इतिहास में जाएं तो ये पुल करीब 56 किलोमीटर लंबा था।

रामसेतु के बारे में 2007 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ऐसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह सेतु इंसानों ने बनाया है। जब इस मुद्दे पर विरोध और धार्मिक भावनाएं भड़कने लगीं तो सरकार ने अपना हलफनामा वापस ले लिया।

उल्लेखनीय है कि भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है। इसे भारत में रामसेतु और दुनियाभर में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 30 मील (48 किमी) है। यह पुल मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है, जिससे यहां बड़ी नावें और जहाज चलाने में खासी दिक्कत आती है।

कहा जाता है कि 15 शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। जिसके बाद यह पुल समुद्र में डूब गया। 1993 में नासा ने इस रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं, जिसमें इसे मानव निर्मित पुल बताया गया था।

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