झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ियों पर स्थित जैन समुदाय के सबसे बड़ा तीर्थ सम्मेद शिखरजी को टूरिस्ट प्लेस बनाए जाने का विरोध कर रहे जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने मंगलवार को जयपुर में प्राण त्याग दिए। वे झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ 25 दिसम्बर से आमरण अनशन पर बैठे थे। सुज्ञेयसागर जयपुर के सांगानेर में पिछले 9 दिनों से आमरण अनशन पर थे। सुज्ञेयासागर 72 साल के थे। मंगलवार सुबह उनकी डोल यात्रा जयपुर में सांगानेर स्थित संघीजी मंदिर से निकाली गई। इस दौरान आचार्य सुनील सागर सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग मौजूद रहे। जैन मुनि को जयपुर में ही समाधि दी जाएगी। जैन समुदाय के सदस्य पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के राज्य सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं।
मुनि सुज्ञेयसागर का जन्म जोधपुर के बिलाड़ा में हुआ था, लेकिन उनका कर्मक्षेत्र मुंबई का अंधेरी रहा। उन्होंने आचार्य सुनील सागर महाराज से गिरनार में दीक्षा ली थी। बांसवाड़ा में मुनि दीक्षा और सम्मेद शिखर में क्षुल्लक दीक्षा ली थी। मुनि ने शुरू से उपवास व्रत की पालना की और अंत में तीर्थ को बचाने के लिए उपवास रखा। संत का घर का नाम नेमिराज था।
2019 में केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इसके बाद झारखंड सरकार ने एक संकल्प जारी कर जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया। गिरिडीह जिला प्रशासन ने नागरिक सुविधाएं डेवलप करने के लिए 250 पन्नों का मास्टर प्लान भी बनाया है।
पारसनाथ पहाड़ी सम्मेद शिखर और उसकी तराई में स्थित मधुवन को पर्यटन स्थल घोषित करने की अधिसूचना वापस लेने की मांग पर रांची में जैन समाज के लोगों ने मंगलवार को राजभवन तक विशाल मौन जुलूस निकाला। जैन समाज ने राज्यपाल रमेश बैस को अपनी भावनाओं से अवगत कराते हुए एक ज्ञापन सौंपा। इसमें कहा गया है कि जैनियों के इस सर्वोच्च तीर्थस्थल को पर्यटन स्थल बनाने से यहां की पवित्रता भंग होगी। देश-विदेश के जैन धर्मावलंबी चाहते हैं कि इसे तीर्थस्थल ही बनाए रखा जाए। इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहां पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं। जंगलों, पहाड़ों के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए नौ किलोमीटर की यात्रा तय कर शिखर पर पहुंचते हैं।
