जोशीमठ जैसे हालात मसूरी में भी बन रहे हैं। गंगटोक में भी कई सालों से जमीन धंस रही है। मसूरी में अंग्रेजों द्वारा 100 साल पहले पानी की सप्लाोई के लिए मसूरी के ठीक ऊपर गनहिल पर बनाए गए जलाशय में दरारें पड़ने लगी हैं। यह कभी भी फट सकता है। इसके अलावा शहर को गगोली पावर हाउस स्टेशशन हिल से भी बड़ा खतरा है। शहर की जमीन भी धंसने लगी है। मुख्यस बाजार की सड़क चौड़ाई में काफी लंबाई तक आधी धंस चुकी है। वहां मकानों के नीचे कई-कई इंच खाली जगह बन गई है। कभी भी इसकी वजह से मकानों में दरारें पड़ सकती है।
पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा के अनुसार हिमालय पहाड़ अभी अपनी शैशव अवस्थाप में है। इसे कचरे और मलबे का ढेर भी कहा जा सकता है। सिर्फ जोशीमठ ही नहीं मसूरी, गंगटोक, जम्मू , नैनीताल, भीमताल जैसे तमाम हिमालयी हिल स्टेहशंस में जमीन धंसने या दरकने की समस्यार आम है। धरासू से लेकर भैरव घाटी तक उत्ततरकाशी की पूरी बेल्टे में आए दिन सड़कों के धंसने की घटनाएं होती रहती हैं। पिछले कुछ साल में ही गंगटोक की जमीन करीब 7 इंच तक धंस चुकी है।
