चुनावी चंदे से कमाई में जमीन-आसमान का फर्क

मार्च 2018 और 2022 के बीच खरीदे गए सभी चुनावी बॉन्ड्स में से आधे से अधिक भाजपा को प्राप्त हुए। चुनाव आयोग के आंकड़ों से यह पता चला है। इलेक्टोरल बॉन्ड्स कंपनियों को गुमनाम रूप से राजनीतिक दलों को असीमित मात्रा में धन दान करने में मदद करता है। राजनीतिक दलों के खुलासों के अनुसार भाजपा को कुल 9,208 करोड़ रुपये में से 5,270 करोड़ रुपये या 2022 तक बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड का 57 प्रतिशत प्राप्त हुआ। मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी दूसरे स्थान पर रही, जिसे इसी अवधि में 964 करोड़ रुपये या 10 प्रतिशत प्राप्त हुए। पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये या सभी चुनावी बॉन्ड का 8 प्रतिशत प्राप्त हुआ।

भाजपा को मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 1,033 करोड़ रुपये, 2021 में 22.38 करोड़ रुपये, 2020 में 2,555 करोड़ रुपये और 2019 में 1,450 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। इसमें 2018 वित्तीय वर्ष में प्राप्तियों के रूप में 210 करोड़ रुपये का भी खुलासा किया। कांग्रेस को वित्तीय वर्ष 2022 में इलेक्टोरल बांड से 253 करोड़ रुपये, 2021 में 10 करोड़ रुपये, 2020 में 317 करोड़ रुपये और 2019 में 383 करोड़ रुपये मिले। तृणमूल कांग्रेस को मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 528 करोड़ रुपये, 2021 में 42 करोड़ रुपये, 2020 में 100 करोड़ रुपये और 2019 में 97 करोड़ रुपये मिले। 2017 में लाया गया चुनावी बॉन्ड व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा भारत में राजनीतिक दलों को दान देने के लिए खरीदा जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे की अनुमति देते हैं, इस सिस्टम के आलोचकों का कहना है कि वे सत्ता और भ्रष्टाचार के संभावित दुरुपयोग को जन्म दे सकते हैं। इन बांडों का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा सकता है। आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बांड राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता को कमजोर करते हैं और धनी दानदाताओं को अनुचित लाभ देते हैं। सुप्रीम कोर्ट व्यवस्था बनाने वाले कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर इस महीने के अंत में सुनवाई करेगा।

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