कोटा में गुरुवार को एक अनोखी शादी हुई। इसमें दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर दूल्हे के द्वार पहुंची। सास ने उसे माला पहनाकर रस्म अदा की। इसके बाद दूल्हे ने दुल्हन को गोद में उठाकर फेरे लिए। खास बात यह रही कि इस मौके पर दोनों समधनों (दुल्हन- दूल्हे की मां और चाची) के भी फेरे हुए। दूल्हा दुल्हन के फेरे दो दिन में पूरे हुए। यह एक परंपरा है, जो श्रीमाली ब्रहाम्ण समाज में निभाई जाती है।
कोटा के दादाबाड़ी निवासी आयुर्वेद सर्जन डॉ.दीक्षा त्रिवेदी और जोधपुर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रतीक दवे की शादी गुरुवार को हुई। दूल्हा पक्ष दोपहर में कोटा पहुंचा। इसके बाद सगाई की रस्म निभाई गई। दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर दूल्हे के घर पहुंची। दूल्हे पक्ष की महिलाओं ने दुल्हन को माला पहनाकर स्वागत किया। एक तरह से यह मुंह दिखाई थी। दुल्हन का आदर सत्कार किया गया। घोड़ी की पूजा की गई। इसके बाद दुल्हन को माला पहनाकर उसे लहंगा दिया गया। तिलक निकाला गया।
दुल्हन के चाचा मुकेश बोहरा ने बताया- देर शाम को दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन को लेने पहुंचा। बारात द्वार पर आई। खास बात यह थी कि दूल्हा दुल्हन के हाथ में मेंहदी की बजाय खेजडी के पत्ते थे। देर रात को फेरों से पहले दूल्हा और दुल्हन की मां और चाची ने भी एक दूसरे के साथ फेरे लिए। दुल्हन दिक्षा की मां वसुंधरा और दूल्हे प्रतीक की मां मधुबाला के पहले फेरे हुए, जो बिना अग्नि के लिए। इसके बाद मुहुर्त के अनुसार दूल्हा दुल्हन ने फेरे लिए। सिर्फ चार फेरे रात को लिए गए। इस दौरान दूल्हा-दुल्हन के बीच पर्दा रहा। कांच में दोनों को एक दूसरे का चेहरा दिखाया गया। इसके बाद दोनों ने काजल बिंदी से एक दूसरे का श्रृंगार किया। दूसरे दिन शुक्रवार को दुल्हन की विदाई से पहले चार फेरे हुए। इसमें दुल्हन को दूल्हे ने गोद में उठाया और फेरे लिए।
दुल्हन दीक्षा की चाची प्रेमलता व्यास ने बताया- समाज में बेटी की शादी धूमधाम से होती है। इसमें परम्पराओं के अनुसार फेरों से पहले बेटी जहां बारात ठहरती है, वहां खुद घोड़ी पर सवार होकर ठाट-बाट से जाती है। इस समय ही दूल्हे के परिवार के लोग दुल्हन को देखते हैं। आदर सम्मान करते हैं। जिस तरह दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर आता है। उसी सम्मान तथा धूमधाम से दुल्हन अपने ससुराल जाती है। परिजनों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पूर्व में शादी से पहले लड़के-लड़कियों के आपस में मिलने व बातचीत नहीं होती थी। शादी के बाद ही दूल्हा-दुल्हन को देखता था। यह परम्परा उसी का हिस्सा है। इसे आड़बंदोला कहा जाता है।
श्रीमाली ब्राह्मण समाज की परंपरा है कि दूल्हा- दुल्हन दो हिस्सों में फेरे लेते हैं। पहले चार फेर रात को। फिर सुबह विदाई से पहले चार फेरे दुल्हन को गोद में उठाकर होते हैं। इसके पीछे दो कहानी बताई जाती है। एक विष्णु लक्ष्मी के विवाह से जुड़ी परम्परा और दूसरी कृष्ण रुक्मणी विवाह से संबंधित कहानी बताई जाती है। भगवान शिव के इंतजार में विष्णु के विवाह का मुहूर्त निकलने लगा तो उन्होंने जल्दी से चार फेरे ले लिए। विवाह हो गया, लेकिन इसी बीच भगवान शिव आए तो बाद के फेरे लक्ष्मी को गोद में उठाकर लिए। भगवान शिव ने इस बारे में पूछा तो कहा गया कि लक्ष्मी के पैर में चोट है। इसके अलावा कहा जाता है कि कृष्ण और रुक्मणी विवाह से भी यह परंपरा जुड़ी हुई है। समाज में शुरू से ही इस पंरपरा का पालन किया जा रहा है। आठ फेरों को अष्टमंगला व चार फैरों को चतुर्थी कर्म कहते हैं।
दूल्हा दुल्हन के फेरे से पहले समधनों के फेरे लेने को लेकर किसी के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था। हालांकि समाज की महिलाएं कहती है कि दोनों परिवारों के बीच रिश्ते की डोर मजबूत हो और प्यार लगाव बढ़े, इसलिए यह परंपरा निभाई जाती है। इससे दूल्हा दुल्हन की मां और चाची के बीच भी बंधन बधंता है। आपस में प्यार बढ़ता है।
